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{{भायल(परमार) राजपूत}}
 
मालवा के परमारों के शासकों के पूर्वजों में सबसे पहला नाम उपेन्द्र मिलता हे | परमारों का शिलालेखीय आधार पर सबसे प्रथम व्यक्ति धूमराज था | मालूम होता हे वह व्यक्ति मालवा व् आबू के परमारों का पूर्व पुरुष था सही वंशक्रम कृष्णराज (उपेन्द्र ) से प्रारंभ होता हे जिसका दूसरा नाम कृष्णाराज भी था | उदयपुर प्रश्ति से ज्ञात होता हे की उसने राजा होने के सम्मान प्राप्त किया उसने कई यग्य किये यह प्रश्ति ११५८-१२५७ के मध्य की है | इसके बाद क्रमशः बैरसी ,सीयक ,व् वाक्पति गद्धी पर बेठे | उसके विषय में उदयपुर ग्वालियर राज्य के शिलालेख में लिखा हे | की उसके घोड़े गंगा समुन्द्र में पानी पीते थे | संभवत वाक्पति राष्ट्रकूटो का सामंत था | उनके द्वारा गंगा तक किये गए आक्रमणों में वह भी साथ था | इसका पुत्र बैरसी 11 भी वीर हुआ | उसके वि. सं. १००५ माघ बदी अमावस्या के दानपत्र से विदित होता हे की वह राष्ट्रकूटों का सामंत था | परन्तु वि.सं. १०२९ ई.सं,. ९७२ में उसने राष्ट्रकूट शासक खोट्टीग्देव पर चढ़ाई की और उसेहरा कर पराधीनता का जुआ फेंक दिया पाईललछी नाम माला -धनपाल इसने हूणों को भी हराया | इसके दो पुत्र मुंज व् सिन्धुराज थे | | सीयक का मुंज पर अधिक प्रेम था | इस कारन उसे हि अपना उतराधिकारी चुना और निश्चय किया गया की मुंज के बाद उसका भाई सिन्धुराज उतराधिकारी बनेगा | मुंज सीयक सेकंड का उतराधिकारी हुआ | मुंज की वाक्पति उल्पलराज ,अमोध्वर्ष ,प्रथ्वीवल्लभ आदी उपाधिया थी | अतः मुंज की शिलालेख में वाक्पति,उत्पल आदी नमो से भी अंकित किया गया है | मुंज का समय १०३० से १०५१ वि.तक था | मुंज ने वाक्पति तैलप को कई बार हराया | अतः तैलप चालुक्य ने उसे केद कर लिया | जेल में हि मुंज का तैलप की पुत्री मृणालवती से प्रेम हो गया | मुलम होने पर तैलप ने मुंज को मरवा दिया |