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'''आर्यभट (द्वितीय)''' [[गणित]] और [[ज्योतिष]] दोनों विषयों के अच्छे आचार्य थे । इनका बनाया हुआ महासिद्धांत[[महासिद्धान्त]] ग्रंथ ज्योतिष सिद्धांत का अच्छा ग्रंथ है।
 
==जीवन काल==
इन्होंने भी अपना समय कहीं नहीं लिखा है। डाक्टर सिंह और दत्त का मत है (हिस्ट्री ऑव हिंदू मैथिमैटिक्स, भाग 2, पृष्ठ 89) कि ये 950 ई. के लगभग थे, जो शककाल 872 होता है। दीक्षित लगभग 875 शक कहते हैं। आर्यभट द्वितीय [[ब्रह्मगुप्त]] के पीछे हुए है, क्योंकि ब्रह्मगुप्त ने आर्यभट की जिन बातों का खंडन किया है वे [[आर्यभटीय]] से मिलती हैं, महासिद्धांत से नहीं। महासिद्धांत से तो प्रकट होता है कि ब्रह्मगुप्त ने [[आर्यभट]] की जिन-जिन बातों का खंडन किया है वे इसमें सुधार दी गई हैं। कुट्टक की विधि में भी आर्यभट प्रथम, भास्कर प्रथम तथा बह्मगुप्त की विधियों से कुछ उन्नति दिखाई पड़ती है। इसलिए इसमें संदेह नहीं कि आर्यभट द्वितीय ब्रह्मगुप्त के बाद हुए हैं।
 
==महासिद्धांत==
इस ग्रंथ में 18 अधिकार हैं और लगभग 625 आर्याछंद हैं। पहले 13 अध्यायों के नाम वे ही हैं जो [[सूर्यसिद्धांत]] या [[ब्राह्मस्फुट सिद्धांत]] के ज्योतिष संबंधी अध्यायों के हैं, केवल दूसरे अध्याय का नाम है पराशरमताध्याय। 14वें अध्याय का नाम गोलाध्याय है जिसमें 11 श्लोक तक पाटीगणित या अंकगणित के प्रश्न हैं। इसके आगे के तीन श्लोक भूगोल के प्रश्न हैं और शेष 43 श्लोकों में अहर्गण और ग्रहों की मध्यम गति के संबंध में प्रश्न हैं। 15वें अध्याय में 120 आर्याछंद हैं, जिनमें पाटीगणित, क्षेत्रफलस, घनफल आदि विषय हैं। 16वें अध्याय का नाम भुवनकोश प्रश्नोत्तर है जिसमें खगोल, स्वार्गादि लोक, भूगोल आदि का वर्णन है। 17वां प्रश्नोत्तराध्याय है, जिसमें ग्रहों की मध्यमगति संबंधी प्रश्नों पर ब्राह्मस्फुट सिद्धांत की अपेक्षा कहीं अधिक विचार किया गया है। इससे भी प्रकट होता है कि आर्यभट द्वितीय ब्रह्मगुप्त के पश्चात् हुए हैं।
 
==योगदान==