"जैन धर्म की शाखाएं": अवतरणों में अंतर

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चैत्यवासियों का विरोध करने के लिये जो काम विधिमार्ग के विद्वानों ने श्वेतांबर संप्रदाय में किया, वही काम चैत्यवासी भट्टारकों का विरोध करने के लिये दिगंबर संप्रदाय तेरह पंथ ने किया। इस पंथ के अनुयायी प्राचीन काल से चले आते हुए कठोर नियमों के पालने में धर्म मानते हैं और वन में वास करनेवाले मुनियों को सच्चा मुनि स्वीकार करते हैं। सन् १६२६ में पंडित बनारसीदास ने आगरा में जिस शुद्ध आम्नाय का प्रचार किया वही आगे चलकर तेरह पंथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तेरह पंथ नाम जब प्रचलित हो गया तब भट्टारकों का मार्ग बीस पंथ कहा जाने लगा। स्थानकवासियों के तेरापंथ से इसे भिन्न समझना चाहिए।
 
इसके अतिरिक्त श्वेतांबरों की भाँति दिगंबरों में भी मूर्तिपूजक और शास्त्रपूजकअमूर्तिपूजक नाम के उपसंप्रदाय पाए जाते हैं। [[तारणपंथ]] [[मूर्तिपूजा]] काके विरोध करतामें उत्तपन है।{{sfn|शास्त्री|2007|p=२१७}} तारणस्वामी (१४४८-१५१५) ने इस पंथ की स्थापना की थी। इस पंथ के अनुयायी आचार्यतारणस्वामी तारणद्वारा तरणरचित मंडलाचार्य१४ जीग्रंथों महामुनिको राजवेदी द्वारापर रचितस्थापित १४कर ग्रंथोंउनकी कोपूजा अर्थातकरते अध्यात्महैं। वाणीजैन कोदर्शन वेदीके परप्रखर स्थापितविद्वान करपं. पंचपरमेष्ठीकैलाशचन्द्र शास्त्री जिनवाणीके अनुसार तारणपन्थ और स्थानकवासी जैसे सम्प्रदाये की पूजाउत्तपती करतेमें हैं।मुसलमानों का मूर्तिपूजा विरोध भी एक कारण है।{{sfn|शास्त्री|2007|p=२६६}}
 
==श्वेतांबर==