"जैन धर्म की शाखाएं": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
पूर्ववत |
||
पंक्ति 39:
चैत्यवासियों का विरोध करने के लिये जो काम विधिमार्ग के विद्वानों ने श्वेतांबर संप्रदाय में किया, वही काम चैत्यवासी भट्टारकों का विरोध करने के लिये दिगंबर संप्रदाय तेरह पंथ ने किया। इस पंथ के अनुयायी प्राचीन काल से चले आते हुए कठोर नियमों के पालने में धर्म मानते हैं और वन में वास करनेवाले मुनियों को सच्चा मुनि स्वीकार करते हैं। सन् १६२६ में पंडित बनारसीदास ने आगरा में जिस शुद्ध आम्नाय का प्रचार किया वही आगे चलकर तेरह पंथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तेरह पंथ नाम जब प्रचलित हो गया तब भट्टारकों का मार्ग बीस पंथ कहा जाने लगा। स्थानकवासियों के तेरापंथ से इसे भिन्न समझना चाहिए।
इसके अतिरिक्त श्वेतांबरों की भाँति दिगंबरों में भी मूर्तिपूजक और
==श्वेतांबर==
|