"अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'": अवतरणों में अंतर

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हरिऔध जी का प्रकृति-चित्रण सजीव और परिस्थितियों के अनुकूल है। संबंधित प्राणियों के सुख में प्रकृति सुखी और दुःख में दुखी दिखाई देती है। कृष्ण के वियोग में ब्रज के वृक्ष भी रोते हैं-
:फूलों-पत्तों सकल पर हैं वादि-बूँदें लखातीं,
:रोते हैं या विपट सब यों आँसुओं की दिखा के।
 
जहाँ हरिऔध जी ने वृक्षों आदि को गिनाने का प्रयत्न किया है, वहाँ उनका प्रकृति-वर्णन कुछ नीरस क्षौर परंपरागत-सा लगता है, किंतु ऐसा बहुत कम हुआ है। अधिकतर उनका प्रकृति चित्रण सरल और स्वाभाविक और ह्रदयग्राही है। :संध्या का एक सुंदर दृश्य देखिए-