"पालि व्याकरण": अवतरणों में अंतर

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==पालि के व्याकरण==
ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान बुद्ध के प्रधान शिष्य महाकच्चान ने पालि का एक व्याकरण रचा था किन्तु वह नहीं मिलता। बोधिसत्त और सब्बगुणाकर नाम के दो व्याकरण थे जो अब नहीं मिलते। आजकल सच्चानकच्चान, मोग्गल्लान और सद्दनीति- इन्ही तीन व्याकरणों का अधिक प्रचार है। इन तीन व्याकरणों में कचान व्याकरण अधिक प्राचीन है जो सम्भवतः श्रीलंका में लिखा गया था। यह व्याकरण बड़े सरल ढंग से लिखा गया है। पालि व्याकरण के कुछ अन्य ग्रन्थों के नाम ये हैं-
: रूपसिद्धि, बालावतार, महानिरुत्ति, चूलनिरुत्ति, निरुत्ति पिटक, सम्बन्धचिन्ता, सद्दसारत्थजालिनी, कच्चान भेद, सदत्थ भेद चिन्ता, कारिका, कारिका वुत्ति, विभत्यत्थ, गन्धत्थी, वाचकोपदेश, नयलक्खण विभावनी, निरुत्तिसंगह, सद्दवुत्ति, कारकपुप्फ मंजरी, गूलत्थदीपनी, मुखमत्तसार, सद्दबिन्दु, सद्दकलिका, सद्दविनिच्छिय इत्यादि।<ref>[https://books.google.co.in/books?id=KxJ7QmwdDnUC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false पालि महाव्याकरण] (भिक्षु जगदीश काश्यप)</ref>