"हिन्दी सिनेमा": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Wikram bhai (वार्ता | योगदान) No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 12:
आने वाले वर्षो में भारत में स्वतंत्रता संग्राम, देश विभाजन जैसी ऎतिहासिक घटना हुई। उन दरमान बनी हिंदी फिल्मों में इसका प्रभाव छाया रहा। 1950 के दशक में हिंदी फिल्में श्वेत-श्याम से रंगीन हो गई। फिल्मों का विषय मुख्यतः प्रेम होता था और संगीत फिल्मों का मुख्य अंग होता था। 1960-70 के दशक की फिल्मों में हिंसा का प्रभाव रहा। 1980 और 1990 के दशक से प्रेम आधारित फिल्में वापस लोकप्रिय होने लगी। 1990-2000 के दशक में बनी फिल्में भारत के बाहर भी काफी लोकप्रिय रही। प्रवासी भारतीयो की बढती संख्या भी इसका प्रमुख कारण थी। हिंदी फिल्मों में प्रवासी भारतीयों के विषय लोकप्रिय रहे।
== भारतीय सिनेमा के प्रवर्तक : दादा साहब फालके
भारत की पहली पूरी अवधि की फीचर फिल्म का निर्माण दादासाहब फाल्के द्वारा किया गया था। दादासाहब भारतीय फिल्म उद्योग के अगुआ थे. वो भारतीय भाषाओँ और संस्कृति के विद्वान थे जिन्होंने संस्कृत महा काव्यों के तत्वों को आधार बना कर राजा हरिशचंद्र (1913), मराठी भाषा की मूक फिल्म का निर्माण किया। इस फिल्म में पुरुषों ने महिलाओं का किरदार निभाया। [25] यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। इस फिलम का सिर्फ एक ही प्रिंट बनाया गया था और इसे 'कोरोनेशन सिनेमेटोग्राफ' में 3 मई 1913 को प्रदर्शित किया गया। फिल्म को व्यावसायिक सफलता मिली और इसने अन्य फिल्मो के निर्माण के लिए अवसर प्रदान किया। तमिल भाषा की पहली मूक फिल्म कीचका वधम का निर्माण रंगास्वामी नटराज मुदालियर ने 1916 में किया. मुदालियर ने मद्रास में दक्षिण भारत के पहले फिल्म स्टूडियो की स्थापना भी की।
== प्रमुख कलाकार ==
|