"आनुवंशिकी": अवतरणों में अंतर

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अनेक वैज्ञानिकों का मत है कि मनुष्य का आनुवंशिक अध्ययन सरल कार्य नहीं है। इसका कारण यह बतलाया जाता है कि मनुष्य की संतान के जन्म में लगभग १० मास लग जाते हैं और इसे पूर्ण वयस्क होने में कम से कम २० वर्ष लगते हैं। अतः एक दो पीढ़ी के ही अध्ययन के लिए २०,२२ वर्षो का समय लगने के कारण मनुष्य का आनुवंशिक अध्ययन जटिल है। इसके साथ ही मनुष्य को एक बार में साधारणतया एक ही बच्चा उत्पन्न होता है, इससे भी अध्ययन में कठिनाई होती है। इन कठिनाइयों के बावजूद मनुष्य के शरीर की बाहरी रचना, रोगों, उनके लक्षणों एवं कारणों आदि का अध्ययन सरल होता है। मनुष्यों की जीवरासायनिक आनुवंशिकी (बायोकेमिकल जेनेटिक्स) का प्रथम अध्ययन लंदन के चिकित्सक आर्चिबाल्ड गैरोड (१८५७-१९३६) ने किया था किंतु सन्‌ १९४० के पूर्व इस विषय पर विस्तृत अध्ययन नहीं हुए थे। मनुष्यों में जीन के संबंध में लगभग ६० गुणों (ट्रेट्स) का पता चला है।
 
जीवविज्ञान में आनुवंशिकी के अध्ययन का वही महत्व है जो भौतिक विज्ञान में परमाणवीय सिद्धांतों का है। मनुष्य के आनुवंशिक अध्ययनों के आरंभिक रूपों में बह्वांगुलिता (अतिरिक्त अंगुलियों का होना), हीमोफ़ीलिया, तथा वर्णांधता (कलर-ब्लाइंडनेस) मुख्य विषय थे। उदाहरणार्थ सन्‌ १७५० में बर्लिन में मॉपर्टुइस ने मेंडेल के नियमों के आधार पर बह्वांगुलिता का वर्णन किया था। इसी प्रकार ओटो (१८०३), हे (१८१३) और बुएल्स (१८१५) ने न्यू इंग्लैंड के तीन विभिन्न परिवारों में लिंगसहलग्न हीमोफ़ीलिया रोग़ के आनुवंशिक कारणों पर प्रकाश डाला था। सन्‌ १८७६ में स्विट्.जरलैंड के चिकित्सक, हार्नर ने वर्णांधता का वर्णन किया। सन्‌ १९५८ में जार्ज बीडिल को 'कायकी तथा औषधि' विषयक जैवरासायानिक आनुवंशिकी क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन्‌ १९५९ में जिरोम लेजुईन ने मंगोलीय मूढ़ता (मंगोलायड ईडिओसी) का विद्वत्तापूर्ण वर्णन प्रस्तुत किया। सन्‌ १९५६ में जे.एच.जिओ, अल्बर्ट लीवान, चार्ल्स फोर्ड एवं जान हैमर्टन ने मुनष्य के गुणसूत्रों की संख्या ४६ बतलाई; इसके पूर्व लोगों का मत था कि यह संख्या ४८ होती है।psjहै।
 
== इन्हें भी देखें==