"एफिल टॉवर": अवतरणों में अंतर

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सरकार द्वारा घोषित की गईं तीनों शर्तें पूरी की गई हो ऐसी १०७ योजनाओं में से गुस्ताव एफ़िल की परियोजना मंज़ूर की गई। '''मौरिस कोच्लिन''' ({{lang-fr|Maurice Koechlin}}) और '''एमिल नुगिएर''' ({{lang-fr|Émile Nouguier}}) इस परियोजना के संरचनात्मक इंजिनियर थे और '''स्ठेफेंन सौवेस्ट्रे''' ({{lang-fr|Stephen Sauvestre}}) वास्तुकार थे। ३०० मजदूरों ने मिलके एफ़िल टावर को २ साल, २ महीने और ५ दिनों में बनाया जिसका उद्घाटन ३१ मार्च १८८९ में हुआ और ६ मई से यह टावर लोगों के लिए खुला गया। [http://www.eiffel-tower.com/everything-about-the-tower/themed-files/69.html]
 
हालाँकि एफ़िल टावर उस वक्तसमय की औद्योगिक क्रांति का प्रतीक था और वैश्विक मेले के दौरान आम जनता ने इसे काफी सराया, फिर भी कुछ नामी हस्तियों ने इस इमारत की आलोचना की और इसे "नाक में दम" कहके बुलाया। उस वक़्त के सभी समाचार पत्र पैरिस के कला समुदाय द्वारा लिखे गए निंदा पत्रों से भरे पड़े थे। विडंबना की बात यह है की जिन नामी हस्तियों ने शुरुआती दौर में इस टावर की निंदा की थी, उन में से कई हस्तियाँ ऐसी थीं जिन्होंने बदलते समय के साथ अपनी राय बदली। ऐसी हस्तियों में नामक संगीतकार '''शार्ल गुनो''' ({{lang-fr|Charles Gounod}}) जिन्होंने १४ फ़रवरी १८८७ के समाचार पत्र "Le Temps " में एफ़िल टावर को पैरिस की बेइज़त्ति कहा था, उन्होंने बाद में इससे प्रेरित होकर एक "concerto " (यूरोपीय संगीत का एक प्रकार) की रचना की।[http://www.eiffel-tower.com/everything-about-the-tower/themed-files/71.html]
 
शुरुआती दौर में एफ़िल टावर को २० साल की अवधि के लिए बनाया गया था जिसे १९०९ में नष्ट करना था। लेकिन इन २० साल के दौरान टावर ने अपनी उपयोगिता वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में साबित करने के कारण आज भी एफ़िल टावर पैरिस की शान बनके खड़ा है।