"प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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Self study note by SATYA PRAKASH GUPTA (SALEMPUR ,DEORIA)
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=== संवेदी पेशीय अवस्था ===
इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदनाओं और शारिरीक क्रियाओं की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है। बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके भीतर सहज क्रियाएँ (Reflexes) होती हैं। इन सहज क्रियाओं और ज्ञानन्द्रियों की सहायता से बच्चा वस्तुओं ध्वनिओं, स्पर्श, रसो एवं गंधों का अनुभव प्राप्त करता है और इन अनुभवों की पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की कुछ विशेषताओं से परिचित होता है।
 
¤ उन्होने इस अवस्था को छः उपवस्था मे बाटा है ~
 
1- सहज क्रियाओ की अवस्था (जन्म से 30 दिन तक)
 
2- प्रमुख वृत्तीय अनुक्रियाओ की अवस्था
 
3- गौण वृत्तीय अनुक्रियाओ की अवस्था
 
4- गौण स्किमेटा की समन्वय की अवस्था
 
5- तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओ की अवस्था
 
6- मानसिक सहयोग द्वारा नये साधनों की खोज की अवस्था
 
=== पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था ===
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इस अवस्था में अनुक्रमणशीलता पायी जाती है। इस अवस्था मे बालक के अनुकरणो मे परिपक्वता आ जाती है इस अवस्था मे प्रकट होने वाले लक्षण दो प्रकार के होने से इसे दो भागों में बांटा गया है।
1. पूर्व प्रत्यात्मक काल: (2-4 वर्ष)
2. अंतः प्रज्ञककाल: / अन्तर्दर्शि अवधि (4-7 वर्ष)
 
=== मूर्त संक्रियात्मक अवस्था ===