"श्यामसुन्दर दास": अवतरणों में अंतर

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== शैली ==
बाबू श्याम सुंदरश्यामसुन्दर दास ने मुख्यतः दो प्रकार की शैलियों में लिखा है-
 
१. '''विचारात्मक शैली'''- विचारात्मक शैली में विचारात्मक निबंध लिखे गए हैं। इस शैली के वाक्य छोटे-छोटे तथा भावपूर्ण हैं। भाषा सबल, सरल और प्रवाहमयी है। उदाहरणार्थ-
 
:''गोपियो का स्नेह बढ़या है। ये कृष्ण के साथ रास लीला में संकलित होती हैं। अनेक उत्सव मनाती है। प्रेममयी गोपिकाओं का यह आचरण बड़ा ही रमणीय है। उसमें कहीं से अस्वाभाविकता नहीं आ सकी।''
 
२. '''गवेषणात्मक शैली'''- गवेषणात्मक निबंधों में गवेषणात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। इनमें वाक्य अपेक्षाकृत कुछ लंबे हैं। भाषा के तत्सम शब्दों की अधिकता है। विषय की गहनता तथा शुष्कता के कारण यह शैली में कुछ शुष्क और रहित है। इस प्रकार की शैली का एक उदाहरण देखिए-
 
:''यह जीवन-संग्राम दो भिन्न सभ्यताओं के संघर्षण से और भी तीव्र और दुखमय प्रतीत होने लगा है। इस अवस्था के अनुकूल ही जब साहित्य उत्पन्न होकर समाज के मस्तिष्क को प्रोत्साहित और प्रति क्रियमाण करेगा तभी वास्तविक उन्नति के लक्षण देख पड़ेंगे और उसका कल्याणकारी फल देश को आधुनिक काल का गौरव प्रदान करेगा।''
 
बाबू श्याम सुंदरदास की किसी प्रकार की शैली में अलंकारों की सजावट नहीं पाई जाती। कहावतों और मुहावरों का प्रयोग तो नहीं के बराबर हुआ है। अपने विचारों को भली प्रकार समझाने के लिए बाबू श्याम सुंदरसुन्दर दास ने एक ही बात को 'सारांश यह है' 'अथवा', 'जैसे' आदि शब्दों के साथ बार-बार दुहराया है।
 
== साहित्य सेवा और स्थान ==