"तर्कशास्त्र": अवतरणों में अंतर

→‎तर्कशास्त्र का स्वरूप: अशुद्धि व वर्तनी दोष निवारण
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 1:
 
'''तर्कशास्त्र''' शब्द अंग्रेजी 'लॉजिक' का अनुवाद है। प्राचीन भारतीय दर्शन में इस प्रकार के नामवाला कोई शास्त्र प्रसिद्ध नहीं है। [[भारतीय दर्शन]] में तर्कशास्त्र का जन्म स्वतंत्र शास्त्र के रूप में नहीं हुआ। [[अक्षपाद! गौतम]] या गौतम (३०० ई०) का [[न्यायसूत्र]] पहला ग्रंथ है, जिसमें तथाकथित तर्कशास्त्र की समस्याओं पर व्यवस्थित ढंग से विचार किया गया है। उक्त सूत्रों का एक बड़ा भाग इन समस्याओं पर विचार करता है, फिर भी उक्त ग्रंथ में यह विषय दर्शनपद्धति के अंग के रूप में निरूपित हुआ है। [[न्यायदर्शन]] में सोलह परीक्षणीय पदार्थों का उल्लेख है। इनमें सर्वप्रथम [[प्रमाण]] नाम का विषय या पदार्थ है। वस्तुतः भारतीय दर्शन में आज के तर्कशास्त्र का स्थानापन्न 'प्रमाणशास्त्र' कहा जा सकता है। किंतु प्रमाणशास्त्र की विषयवस्तु तर्कशास्त्र की अपेक्षा अधिक विस्तृत है।{{उद्धरण आवश्यक|date=सितंबर 2015}}
विचारशीलता ही मनुष्य की वह विशेषता है जिसके चलते वह अन्य प्राणी जगत से भिन्न और श्रेष्ठ है। इसी शक्ति के द्वारा तो मनुष्य ने अनेकानेक ज्ञान-विज्ञानों का सृजन किया है। मनुष्य के विचार व्यवस्थित-अव्यवस्थित, श्रृंखलायुक्त-श्रृंखलारहित और यथार्थ-अयथार्थ कुछ भी हो सकते है। विचार के कुछ नियम होते है जिनके पालन करने से विचार व्यवस्थित, श्रंखलायुक्त और यथार्थ होते है और इन नियमों के पालन न करने से विचार अव्यवस्थित श्रृंखलारहित और अयथार्थ होता है। हम तर्कशास्त्र में विचार के नियमों का ही व्यवस्थित एवं विस्तृत अध्ययन करते हैं।
तर्कशास्त्र को अंग्रेजी में Logic कहते है जो ग्रीक भाषा के Logos से बना है एवं जिसके दो अर्थ होते है-विचार और शब्द। इन दोनों अथों के कारण तर्कशास्त्र को विचारों की भाषाभिव्यक्ति/शाब्दिक अभिव्यक्ति का विज्ञान कहते है।
तर्कशास्त्र में हम ज्ञात तथ्यों के आधार पर अज्ञात तथ्य का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस प्रकार तर्कशास्त्र विशुद्ध विचार के विधानात्मक सिद्धांतों का विज्ञान है लेकिन यह वर्णनमूलक विज्ञान न होकर आदर्श मूलक विज्ञान है क्योंकि इसमें हमें कैसे विचार करना चाहिए इसका वर्णन करते हैं। साथ ही तर्कशास्त्र एक कला भी है जो विचार के नियमों का भिन्न भिन्न क्षेत्रों में प्रयोग करना सिखाती हैं। विज्ञान जहां हमें जानना सिखाता है वहीं पर कला हमें करना सिखाती है। किसी ज्ञान को जानने के बाद आवश्यक हो जाता है कि उसका हम एक विशेष उद्देश्य के लिए प्रयोग करें। इस विशेष उद्देश्य के लिए किसी ज्ञान का प्रयोग करना ही काला है। अतएव तर्कशास्त्र विज्ञान और कला दोनों है।
तर्कशास्त्र असत्य तर्क से सत्य तर्क को अलग करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों एवं सिद्धांतों का अध्ययन है। तर्क शास्त्र के अध्ययन का उद्देश्य इन मापदंडों का पता लगाना और इन्हें उपलब्ध करवाना है ताकि इनका इस्तेमाल तर्कों की जांच करने और गलत तर्कों से अच्छे तर्कों को छांटने के लिए किया जा सके।
तर्क शास्त्री प्रत्येक विषय: विज्ञान और आयुर्विज्ञान, सिद्धांत और कानून, राजनीति और वाणिज्य, खेल और क्रीडा, यहां तक की दैनिक जीवन की मामूली घटनाओं संबंधी तर्क से संबंधित होते हैं। तर्क शास्त्री की दिलचस्पी इन संबंधित तर्कों की विषय वस्तु से नहीं, बल्कि उनके प्रकार और गुणवत्ता में होती है उसका उद्देश्य यह सीखना है कि इन तर्कों की जांच एवं मूल्यांकन किस प्रकार किया जाए।
केवल सोची गई प्रक्रिया ही तर्क नहीं है जो तर्क शास्त्रियों का विचार होता है बल्कि इन प्रक्रियाओं के परिणाम भी तर्क है, तर्क के परिणाम स्वरुप युक्ति होते हैं और इन्हें लिखकर, जांचकर और विश्लेषण करके तैयार किया जा सकता है। यदि आधार वाक्य निष्कर्ष को मानने के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत करता है- तो यदि आधार वाक्य सच होने का दावा किया जाता है तो निष्कर्ष को भी सच माना जाएगा- तभी तर्क सही है अन्यथा यह गलत है।
तर्कशास्त्र का अध्ययन यह आश्वासन नहीं देता है कि किसी का तर्क सही होगा लेकिन कोई व्यक्ति जिसने तर्कशास्त्र का अध्ययन अच्छे से किया है, उसमें इस बात की ज्यादा संभावना है कि वह उस व्यक्ति से ज्यादा अच्छा तर्क दे सकता है जिसने तर्क में निहित सिद्धांतों के बारे में सोचा तक नहीं है। अतएव तर्कशास्त्र के अध्ययन से किसी की तार्किक गुणवत्ता में सुधार होने की ज्यादा संभावना हो सकती है। यह युक्तियों के विश्लेषण करने का और अपने स्वयं के युक्तियों का इस्तेमाल करने का अवसर प्रदान करता है। इसलिए यह विकसित की ओर जाने वाली क्षमताओं और तकनीकों की जानकारी वाली कला के साथ विज्ञान भी है।
 
'''तर्कशास्त्र''' शब्द अंग्रेजी 'लॉजिक' का अनुवाद है। प्राचीन भारतीय दर्शन में इस प्रकार के नामवाला कोई शास्त्र प्रसिद्ध नहीं है। [[ भारतीय दर्शन]] में तर्कशास्त्र का जन्म स्वतंत्र शास्त्र के रूप में नहीं हुआ। [[अक्षपाद! गौतम]] या गौतम (३०० ई०) का [[न्यायसूत्र]] पहला ग्रंथ है, जिसमें तथाकथित तर्कशास्त्र की समस्याओं पर व्यवस्थित ढंग से विचार किया गया है। उक्त सूत्रों का एक बड़ा भाग इन समस्याओं पर विचार करता है, फिर भी उक्त ग्रंथ में यह विषय दर्शनपद्धति के अंग के रूप में निरूपित हुआ है। [[न्यायदर्शन]]है।न्यायदर्शन में सोलह परीक्षणीय पदार्थों का उल्लेख है। इनमें सर्वप्रथम [[प्रमाण]] नाम का विषय या पदार्थ है। वस्तुतः भारतीय दर्शन में आज के तर्कशास्त्र का स्थानापन्न 'प्रमाणशास्त्र' कहा जा सकता है। किंतु प्रमाणशास्त्र की विषयवस्तु तर्कशास्त्र की अपेक्षा अधिक विस्तृत है।{{उद्धरण आवश्यक|date=सितंबर 2015}}
 
== इतिहास ==