"तर्कशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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भारतीय दर्शन में तर्कशास्त्र का जन्म स्वतंत्र शास्त्र के रूप में नहीं हुआ। अक्षपाद या गौतम (३०० ई०) का न्यायसूत्र पहला ग्रंथ है, जिसमें तथाकथित तर्कशास्त्र की समस्याओं पर व्यवस्थित ढंग से विचार किया गया है। उक्त सूत्रों का एक बड़ा भाग इन समस्याओं पर विचार करता है, फिर भी उक्त ग्रंथ में यह विषय दर्शनपद्धति के अंग के रूप में निरूपित हुआ है।न्यायदर्शन में सोलह परीक्षणीय पदार्थों का उल्लेख है। इनमें सर्वप्रथम प्रमाण नाम का विषय या पदार्थ है। वस्तुतः भारतीय दर्शन में आज के तर्कशास्त्र का स्थानापन्न 'प्रमाणशास्त्र' कहा जा सकता है। किंतु प्रमाणशास्त्र की विषयवस्तु तर्कशास्त्र की अपेक्षा अधिक विस्तृत है।
 
 
तर्कवाक्य और वाक्य (Preposition and Sentences)
हम तर्कवाक्य (Preposition) जो प्रत्येक तर्क या युक्ति (argument) की निर्माण इकाई है की, जांच से शुरुआत करते हैं। तर्क वाक्य वह है जिससे दावा किया जा सकता है या इनकार किया जा सकता है। अर्थात प्रत्येक तर्कवाक्य या तो सत्य है या गलत। यद्यपि हम कुछ दी गई तर्कवाक्यों की सत्यता या असत्यता के बारे में नहीं जान सकते जैसे- हमारी आकाशगंगा में किसी अन्य ग्रह पर जीवन संभव है - ऐसा तर्क वाक्य है जिसकी सत्यता या असत्यता के बारे में हम नहीं जानते हैं किंतु यह या तो यह सत्य है कि वहां ऐसी कोई बाह्या लौकिक जीवन है या यह सत्य नहीं है। संक्षेप में तर्कवाक्य की अनिवार्य विशेषता यह है कि वह या तो सत्य है या असत्य।