"हिंदी आलोचना": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 2:
 
==हिन्दी आलोचना==
[[हिन्दी]] की विभिन्न विधाओं की तरह [[आलोचना]] का विकास भी प्रमुख रूप से आधुनिक काल की देन है | आधुनिक काल से पहले आलोचना का स्वरुप प्रमुखतया [[संस्कृत]] [[काव्यशास्त्र]] की पुनरावृति हुआ करती थी | लेकिन आज जो हिंदीहिन्दी आलोचना का स्वरुप है उसका आरम्भ आधुनिक हिन्दी साहित्य के साथ साथ हुआ है।
 
आधुनिक गद्य साहित्य के साथ ही हिंदीहिन्दी आलोचना का उदय भी [[भारतेन्दु युग]] में हुआ | [[विश्वनाथ त्रिपाठी]] ने संकेत किया है कि “हिंदी आलोचना पाश्चात्य की नकल पर नहीं, बल्कि अपने साहित्य को समझने-बूझने और उसकी उपादेयता पर विचार करने की आवश्यता के कारण जन्मी और विकसित हुई|” हिन्दी आलोचना भी संस्कृत काव्यशास्त्र की आधार-भूमि से जुड़कर भी स्वाभाविक रूप से रीतिवाद, [[साम्राज्यवाद]], [[सामन्तवाद]], [[कलावाद]] और [[अभिजात्यवाद]] विरोधी और स्वच्छन्दताकामी रही है | रचना और आलोचना की समानधर्मिता को डॉ [[राम विलास शर्मा]] के इस मन्तव्य से समझा जा सकता है कि जो काम [[निराला]] ने काव्य में और [[प्रेमचन्द ]]ने उपन्यासों के माध्यम से किया वही काम [[आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] ने आलोचना के माध्यम से किया |
 
===हिन्दी के प्रमुख समालोचक===
भारतेन्दु हरिश्चन्द को ही इस विधा का जनक माना जाता है। उन्होंने 'नाटक' नामक एक दीर्घ [[निबन्ध]] लिख कर इसकी शुरुआत की। हिन्दी साहित्य के प्रमुख आलोचक निम्नलिखित हैं –
* [[भारतेन्दु हरिश्चन्दहरिश्चन्द्र]]
 
* [[आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी]]
पंक्ति 24:
* [[आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]]
 
* [[डॉ नगेंद्रनगेन्द्र]]
 
* [[बाबू गुलाबराय]]
पंक्ति 34:
* [[धर्मवीर भारती]]
 
* [[नामवर सिंह|डॉ. नामवर सिंह]]
 
इसके आलावा हिन्दी साहित्य में कई ऐसे आलोचक हुए हैं जिनमें [[सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय]], [[डॉ. फ़तेह सिंह]], [[प्रेमघन]], [[गंगा प्रसाद अग्निहोत्री]], [[अम्बिकादत्त व्यास]], [[डॉ. रामकुमार वर्मा]], डॉ. कृष्णलाल, डॉ. केसरी नारायण शुक्ल, [[जयशंकर प्रसाद]], [[आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र]], डॉ. विनय मोहन शर्मा, डॉ. हरवंशलाल शर्मा, [[इलाचन्द्र जोशी]], [[शिवदान सिंह चौहान]], अमृतराय, [[डॉ. विजयेन्द्र स्नातक]], [[डॉ. विजयपाल सिंह]], डॉ. सत्येन्द्र, डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय आदि।