"केशवदास": अवतरणों में अंतर

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 116:
 
:''जदपि सुजाति सुलच्छनी, सुबरन सरस सुवृत्त
:''भूषन विन न विराजहीं कविता बनिता भित्त।।मित्त।।
 
अतः उनकी कविता में विभिन्न अलंकारों का प्रयोग सर्वत्र दिखाई देता है। अलंकारों के बोझ से कविता के भाव दब से गए हैं और पाठक को केवल चमत्कार हाथ लगता है।