"केशवदास": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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:''जदपि सुजाति सुलच्छनी, सुबरन सरस सुवृत्त
:''भूषन विन न विराजहीं कविता बनिता
अतः उनकी कविता में विभिन्न अलंकारों का प्रयोग सर्वत्र दिखाई देता है। अलंकारों के बोझ से कविता के भाव दब से गए हैं और पाठक को केवल चमत्कार हाथ लगता है।
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