"समाधि": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
ऐड करके टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
छो 2402:8100:2010:B16C:3333:902:7728:416F (Talk) के संपादनों को हटाकर 2402:8100:2011:14B1:36FE:5918:EC19:4EC0 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
||
पंक्ति 2:
{{आधार}}
[[ध्यान]] की उच्च अवस्था को '''समाधि''' कहते हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा योगी आदि सभी धर्मों में इसका महत्व बताया गया है। जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान मे पूरी तरह से डूब जाता है और उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान नहीं रहता है तो उसे समाधि कहा जाता है। [[पतंजलि]] के [[योगसूत्र]] में समाधि को आठवाँ (अन्तिम) अवस्था बताया गया है।
समाधि ध्यान की वह अवस्था है जिसमें मनुष्य पूर्ण वैराग्य और प्रेम के साथ अपने प्रेमी यानि परमात्मा से मिलने की इच्छा के जरिये अपने कुंडलिनी शक्ति को जागृत करता है और तब सूक्ष्मतम लोक में प्रवेश करता है और अपने शरीर की सुध बुध खो देता है कबीर मंसूर में इसका बहुत सुंदर वर्णन मिलता है कि किस प्रकार माया यानि की संसार के लोकलुभावने तत्व जिव को अपनी और आकर्षित करता है और निरंजन के इस जाल से निकलने के लिए 84 लाख जन्म मरण के जाल से छूटने के लिए
{{योग}}
|