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'''यदि साहित्यिक दृष्टि से आँका जाये''' तो यह स्पष्ट विदित होगा कि सीतामढ़ी जिला ने अनेक विलक्षण प्रतिभा पुत्रों को अवतरित किया है। यह वही पावन भूमि है जहां से राष्ट्रकवि [[रामधारी सिंह `दिनकर']] का द्वंद्वगीत गुंजा था तथा बिहार के पंत नाम से चर्चित आचार्य जय किशोर नारायण सिंह ने अपनी सर्जन धर्मिता को धार दी। हिन्दी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान सांवलिया बिहारी लाल वर्मा ने "विश्व धर्म दर्शन" देकर धर्म-संस्कृति के शोधार्थियों के लिए प्रकाश का द्वार खोल दिया था। गाँव-गंवई भाषा में जनता के स्तर की कवितायें लिखकर नाज़िर अकवरावादी को चुनौती देने वाले आशु कवि बाबा नरसिंह दास का नाम यहाँ आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है। इसके अलावा [[रामवृक्ष बेनीपुरी]] के जीवन का वहुमूल्य समय यहीं व्यतीत हुआ था। साहित्य मर्मज्ञ लक्षमी नारायण श्रीवास्तव, डॉ रामाशीष ठाकुर, डॉ विशेश्वर नाथ बसु, राम नन्दन सिंह, पंडित बेणी माधव मिश्र, मुनि लाल साहू, सीता राम सिंह, रंगलाल परशुरामपुरिया, हनुमान गोएन्दका, राम अवतार स्वर्ङकर, पंडित उपेन्द्रनाथ मिश्र मंजुल, पंडित जगदीश शरण हितेन्द्र, ऋषिकेश, राकेश रेणु, राकेश कुमार झा, बसंत आर्य, राम चन्द्र बिद्रोही, माधवेन्द्र वर्मा, उमा शंकर लोहिया, गीतेश, इस्लाम परवेज़, बदरुल हसन बद्र, डॉ मोबिनूल हक दिलकश आदि सीतामढ़ी की साहित्यिक गतिविधियों में समय-समय पर जीवंतता लाने में सक्रिय रहे हैं।
 
इसके अलावा वैद्यनाथ प्रसाद गुप्त "चर्चरीक", मदन साहित्य भूषण, राम चन्द्र आशोपुरी, मुन्नी लाल आर्य शास्त्री, परम हंश जानकी बल्लभ दास, योगेंद्र रीगावाल, संत रस्तोगी, नरेंद्र कुमार, सीता राम दीन, आचार्य सारंग शास्त्री, डॉ मदन मोहन वर्मा पूर्णेंदू, डॉ वीरेंद्र वसु, डॉ कृष्ण जीवन त्रिवेदी, डॉ महेंद्र मधुकर, डॉ पदमाशा झा और डॉ शंभूनाथ सिंह नवगीत सम्मान पाने वाले बिहार के पहले नवगीतकार '''राम चन्द्र चंद्रभूषण''' आदि सीतामढ़ी के दीप्तिमान रत्न सिद्ध हुये हैं। शमशेर जन्म शती काव्य सम्मान से अलंकृत अंतर्जाल की वहुचर्चित कवयित्री रश्मि प्रभा का जन्म भी सीतामढ़ी में ही हुआ है।<ref>[http://www.kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE#.UMs2E-RJNrE कविता कोश में रश्मि प्रभा का परिचय]</ref>
 
अपने सीतामढ़ी प्रवास में कुछ साहित्यकारों ने यहाँ की साहित्यिक गतिविधियों में प्राण फूंकने का कार्य किया था, जिनमें सर्व श्री पांडे आशुतोष, तिलक धारी साह, ईश्वर चन्द्र सिन्हा, श्री राम दुबे, अदालत सिंह अकेला, [[हरिकृष्ण प्रसाद गुप्ता अग्रहरि]], [[हृदयेश्वर]] आदि। यहाँ की दो वहुचर्चित साहित्यिक प्रतिभाओं क्रमश: [[आशा प्रभात]] <ref>http://www.jagran.com/bihar/sitamarhi-8432354.html</ref> और [[रवीन्द्र प्रभात]] ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस शहर का नाम रोशन किया है।<ref>आज, राष्ट्रीय हिंदी दैनिक, पटना संस्करण,14.11.1994, पृष्ठ संख्या :9, आलेख शीर्षक : साहित्य में सीतामढ़ी, लेखक: रवीन्द्र प्रभात</ref> देश के जानेमाने आलोचक, 'दलित साहित्य का समाजशास्त्र' (भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली) और 'भारत में पिछड़ा वर्ग आन्दोलन और परिवर्तन का नया समाजशास्त्र' (ज्ञान बुक्स, नई दिल्ली)<ref>{{Cite book|url=https://www.google.com/search?|title=भारत में पिछड़ा वर्ग आन्दोलन और परिवर्तन का नया समाजशास्त्र|last=ठाकुर|first=हरिनारायण|publisher=ज्ञान बुक्स (कल्पज पब्लिकेशन), नई दिल्ली|year=2009, कई संस्करण|isbn=8178357410|location=नई दिल्ली|pages=210|language=हिंदी}}</ref> के लेखक प्रो. (डा.) हरिनारायण ठाकुर भी सीतामढ़ी जिले के ही हैं। दोनों पुस्तकें देश के केन्द्रीय विवि सहित लगभग सभी विश्वविद्यालय के कोर्स में पढाई जाति हैं। उनका घर मेजरगंज प्रखंड के खैरवा गाँव में है। मुजफ्फरपुर के रामदयालु सिंह कालेज में प्रोफेसर के पद पर काम करने के बाद बी.आर. अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुज़. और एल.एन. मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कई-कई कालेजों के वे प्रिंसिपल रहे हैं। सम्प्रति वे महारानी जानकी कुंवर कालेज, बेतिया में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=cDqENKs_nZgC&vq=isbn+no&source=gbs_navlinks_s|title=दलित साहित्य का समाजशास्त्र|last=ठाकुर|first=हरिनारायण|publisher=भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली|year=2009, संस्करण- 2010, 2014 अब पेपर बैक प्रेस में|isbn=978-81-263-1734-9|location=भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली|pages=प्रथम संस्करण-554, अन्य संस्करण-600|language=हिंदी}}</ref>
 
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