"100 दिन": अवतरणों में अंतर

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'''''100 दिन''''' ({{lang-en|100 Days}}) हिन्दी भाषा की 1991 में बनी फ़िल्म है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में [[माधुरी दीक्षित]], [[जैकी श्रॉफ]] और [[जावेद जाफ़री]] हैं। फ़िल्म एक रहस्य रोमांचक है जिसकी पटकथा [[अतिरिक्त संवेदी बोध]] वाली महिला के इर्दगिर्द घूमती है। यह ऐसी फ़िल्म है जिसमें रहस्य जैसी कोई चीज नहीं थी, लेकिन फ़िर भी उसमें एक ऐसा सस्पेंस था जिसने क्लाइमेक्स पर दर्शकों को हैरान कर दिया था। फिल्म सुपरहिट थी और दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया था।
 
== पटकथा ==
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देवी को तब राहत मिली जब उसने अपनी बहन से बात की और पता चला की वो सकुशल है। यद्दपि उसके तुरंत बाद देवी की बहन की हत्या उसी तरह होती है जैसे देवी ने देखी थी। हत्यारे ने रमा के शव को हवेली की दीवारों में छुपा दिया। रमा को लापता घोषित कर दिया गया। देवी को पूर्ण विश्वास हो गया था कि उसकी बहन की हत्या हो चुकी है। पाँच वर्ष बाद, देवी अपने चाचा ([[अजीत वाच्छानी]]) के यहाँ रहने लगती है जहाँ वह करोड़पति व्यापारी राम कुमार ([[जैकी श्रॉफ]]) से मिलती है और उसके साथ प्रणय सूत्र में बन्ध जाती है। सुनील जो देवी से अप्रकट रूप में प्यार करता था बहुत निराश हुआ। देवी और राम का विवाह हो गया और राम की पारिवारिक हवेली में प्रवेश करते हैं, जिसे एक कानूनी लड़ाई के बाद फिर से अर्जित किया था। यह बहुत कम लोग जानते थे कि रमा को यहां दफन किया गया था। जब देवी ने आकस्मिक दृश्य देखना पुनः आरम्भ किया, रमा का कंकाल वाली दीवार ढह जाती है।
 
देवी देखती है कि हवेली की एक दीवार ढह गई है। देवी वहाँ दीवार के नीचे कंकाल को यहाँ स्व निकाल देती है। देवी यह जानती है कि यह कंकाल किसका है: यह रमा है, चूँकि उसके पास भी एक गले का हार वैसा ही था जैसा देवी के पास था। इंस्पेक्टर ([[शिवाजी सातमसतम]]) तुरन्त यह बताता है कि जब रमा लापता हुई तब हवेली बन्द थी, अतः कोई भी उसके शव को यहाँ छुपा सकता है और कोई भी सच्चाई को नहीं जानता। तथापि वह संदेह करता है कि यह युवती रमा ही है क्या : ऐसे अनेक हार उपलब्द्ध हैं।
 
इस समय देवी एक और आकस्मिक दृश्य देखती है जिसमें वह एक अन्य महिला की हत्या होते हुए देखती है। यहाँ वह दो बिन्दु विवरण के साथ देखती है: एक पत्रिका जिसके आवरण पृष्ठ पर एक घोड़े का चित्र है और एक विडियो कैसेट जिसका नाम 100 दिन है। सुनील और देवी पत्रिका के कार्यालय जाते हैं। सम्पादक ने उन्हें बहुत ही विनम्रता के साथ बताया कि अगले छः माह तक आवरण पृष्ठ पर घुड़सवारी से सम्बंधित कोई चित्र नहीं लगाया जाएगा। कैसेट वाला सुराग भी निरर्थक साबित हुआ : क्योंकि बोम्बे के किसी भी विडियो की दुकान पर ऐसा शीर्षक का सामान नहीं रखता। देवी रमा के जीवन के बारे में छानबीन करने में जूट जाती है। रमा एक शोध छात्रा थी; वह भारत में प्राचीन मूर्तियों और मंदिरों पर अपना शोध पत्र (थिसिस) तैयार कर रही थी। देवी की एक त्वरित जाँच से पता चलता है कि रमा द्वारा सूचीबद्ध कई कलाकृतियाँ या तो रहस्यमय ढंग से गायब हो गयी, चोरी हो गयी या नकली वस्तुओं द्वारा प्रतिस्थापित कर दी गई। उसने यह भी पता लगा लिया कि दो जगमोहन और पार्वती नामक व्यक्ति संग्रहालय में काम करते हैं संदेह के कारण नौकरी से निकाले जा चुके हैं। पार्वती, देवी के इस दृश्य में नये शिकार के रूप में उभरी।
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* [[नीलम मेहरा]] - पार्वती
* [[अजीत वाच्छानी]] - देवी के चाचा
* [[नीलम मेहरा]] - पार्वती
* [[शशि किरन]] - ''प्रिया'' का सम्पादक
* [[शिवाजी साथमसतम]] - पुलिस इन्सपेक्टर
* [[महावीर शाह]] - मि॰ माथुर
* [[राजा दुग्गल]] - महदेव
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== शैलियाँ ==
;डरावणीडरावनी: फिल्म डरावणीडरावनी है क्यों कि इसमें इन्सानों की हत्या जैसे दृश्य फिलमाये गये हैं। कंकाल का मिलना। देवी को दिखने वाले डरावणे दृश्य।
;रोमांस: इसमें देवी और राम का प्रेम विवाह दिखाया गया है को रोमांस जिससे रोमांस के दृश्य भी है।
;रोमांचक: इसमें कुछ हास्य दृश्य भी हैं जैसे देवी से मिलने से पहले राम एक शादी में जाता है वहाँ उससे पुछा जाता है कि वह किसका अतिथि है? लड़की वालों का अथवा लड़के वालो का। वहाँ जब वह अपना उपहार का डिब्बा यह कहते हुए खोलता है कि देखो हम कितने महंगे उपहार लाते हैं और उसमें पुराने टुटे हुए जुते निकलते हैं। ऐसे और भी अनेक दृश्य हैं।
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| "गबर सिंह यह क्या"
| [[अमित कुमार]], [[अलका याज्ञिक|अलका याज्ञनिक]]
| रविंद्ररविन्दर रावल
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| 3
| "ले ले दिल दे दे दिल"
| अमित कुमार, लता मंगेशकर
| रविंद्ररविन्दर रावल
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| "ताना देरे ना ताना ना दे"
| एस॰ पी॰ बालासुब्रमण्यम, लता मंगेशकर
| रविंद्ररविन्दर रावल
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"https://hi.wikipedia.org/wiki/100_दिन" से प्राप्त