"वाल्मीकि": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
छो 2402:8100:384F:29FC:8F7:7E4D:CA5:80B6 (Talk) के संपादनों को हटाकर Raju Jangid के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
||
पंक्ति 16:
== आदि कवि वाल्मीकि ==
वाल्मीकि रामायण महाकाव्य की रचना करने के पश्चात आदिकवि कहलाए। वे कोई ब्राह्मण नही थे,
एक बार भगवान वाल्मीकि एक [[क्रौंच|क्रौंच]] पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलिये ने प्रेम-मग्न क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि जी की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
:'''मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
:'''यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥''''''
पंक्ति 27:
अपने महाकाव्य "रामायण" में अनेक घटनाओं के घटने के समय [[सूर्य]], [[चंद्र]] तथा अन्य [[नक्षत्र]] की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे [[ज्योतिष]] विद्या एवं [[खगोल]] विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे।
अपने वनवास काल के मध्य "
देखत बन सर सैल सुहाए।
वाल्मीक आश्रम प्रभु आए॥
तथा जब "[[
उपरोक्त उद्धरणों से सिद्ध है कि वाल्मीकि जी को "राम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं का पूर्णरूपेण ज्ञान था। उन्होने
== जीवन परिचय ==
महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो [[द्रौपदी]] यज्ञ रखती है,जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था और कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो [[कृष्ण]] के कहने पर सभी
==सन्दर्भ==
|