"सिसोदिया (राजपूत)": अवतरणों में अंतर
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'''सिसोदिया''' या '''गेहलोत''' या'''सिसोदिया एक [[राजपूत]] राजवंश है, जिसका [[राजस्थान]] के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह [[सूर्यवंशी]] [[क्षत्रिय]] थे। सिसोदिया राजवंश में कई वीर शासक हुए हैं।
'गुहिल' या 'गेहलोत' 'गुहिलपुत्र' शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। कुछ विद्वान उन्हें मूलत सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते हैं जिसकी पुष्टि [[पृथ्वीराज विजय]] काव्य से होती है। [[मेवाड़]] के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन [[अभिलेख]] मिले है। अत: वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों में उनकी विस्तार हुआ होगा। गुह के बाद भोज, महेंद्रनाथ, शील ओर अपराजित गद्दी पर बैठे। कई विद्वान शील या शीलादित्य को ही '''बप्पा''' मानते हैं। अपराजित के बाद महेंद्रभट और उसके बाद कालभोज राजा हुए। [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] ने कालभोज को चित्तौड़ दुर्ग का विजेता [[बप्पा रावल|बप्पा]] माना है। किंतु यह निश्चित करना कठिन है कि वास्तव में बप्पा कौन था। कालभोज के पुत्र खोम्माण के समय अरब आक्रान्ता मेवाड़ तक पहुंचे। अरब आक्रांताओं को पीछे हटानेवाले इन राजा को [[देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर]] ने बप्पा मानने का सुझाव दिया है।
कुछ समय तक चित्तौड़
प्रतिहार
सन् १११६ में विजयसिंह गद्दी पर वर्तमान था। उसने मालवराज उदयादित्य की लड़की से विवाह किया और अपनी लड़की अल्हणदेवी का विवाह [[कलचुरि]] राजा [[गयकर्ण]] से किया। उससे तीन पीढ़ी बाद '''रणसिंह हुआ जिसके एक पुत्र क्षेमसिंह के वंशज रावल और दूसरे पुत्र राहप के वंशज राणा कहलाए।''' क्षेमसिंह के ज्येष्ठ पुत्र सामन्तसिंह ने गुजरात के राजा अजयपाल को हराया, किंतु कुछ समय के बाद सामंतों के विरोध और कीर्तिपाल चौहान के आक्रमणों के कारण उसे मेवाड़ छोड़ना पड़ा। उसके छोटे भाई कुमारसिंह ने कीर्तिपाल को मेवाड़ से निकालकर अपने राज्य का पुनरुद्वार किया। कुमारसिंह का प्रपौत्र जैत्रसिंह भी अच्छा राजा था। इसके समय [[इल्तुत्मिश]] ने [[नागदा]] नगर को ध्वस्त किया किंतु अन्यत्र सब जगह उसे सफलता मिली। उसने गुजरात के [[चालुक्य|चालुक्यों]], [[नाडोल]] के चौहानों और [[मालवा|मालवे]] के [[परमार राजवम्श|परमारों]] को युद्ध में हराया, और सन् १२४८ में दिल्ली के सुल्तान नासिरुद्दीन के विरुद्ध उसके भाई जलालुद्दीन को शरण दी। जैत्रसिंह का देहांत संवत १३१७ के आसपास हुआ।
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