"कृष्णदेवराय": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Vijayanagara.jpg|right|thumb|300px|कृष्णदेवराय की कांस्य प्रतिमा]]
{{विजयनगर साम्राज्य}}
[[चित्र:View of dilapidated main mantapa at the Vitthala templein Hampi.jpg|left|thumb|300px||संगीतमय स्तम्भों से युक्त हम्पी स्थित विट्ठल मन्दिर ; इसके होयसला शैली के बहुभुजाकार आधार पर ध्यान दीजिए।]]
'''कृष्णदेवराय''' (1509-1529 ई. ; राज्यकाल 1509-1529 ई) [[विजयनगर साम्राज्य]] के सर्वाधिक कीर्तिवान राजा थे। वे स्वयं [[कवि]] और कवियों के संरक्षक थे। [[तेलुगु भाषा]] में उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य का एक रत्न है। इनकी भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित पुस्तक वंशचरितावली तेलुगू  के साथ—साथ संस्कृत में भी मिलती है। संभवत तेलुगू का अनुवाद ही संस्कृत में हुआ है। प्रख्यात इतिहासकार तेजपाल सिंह धामा ने हिन्दी में इनके जीवन पर प्रामाणिक उपन्यास '''आंध्रभोज''' लिखा है। तेलुगु भाषा के आठ प्रसिद्ध कवि इनके दरबार में थे जो '''[[अष्टदिग्गज]]''' के नाम से प्रसिद्ध थे। स्वयं कृष्णदेवराय भी '''आंध्रभोज''' के नाम से विख्यात थे।