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[[गुप्त साम्राज्य]] के पतन के बाद भारत में अराजकता की स्थिति बना हुई थी। ऐसी स्थिति में हर्ष के शासन ने राजनैतिक स्थिरता प्रदान की। कवि [[बाणभट्ट]] ने उसकी जीवनी [[हर्षचरित]] में उसे ''चतुःसमुद्राधिपति'' एवं ''सर्वचक्रवर्तिनाम धीरयेः'' आदि उपाधियों से अलंकृत किया। हर्ष कवि और नाटककार भी था। उसके लिखे गए दो नाटक [[प्रियदर्शिका]] और [[रत्नावली]] प्राप्त होते हैं।
 
हर्ष का जन्म [[थानेसर]] (वर्तमान में हरियाणा) में हुआ था। थानेसर, प्राचीन हिन्दुओं के तीर्थ केन्द्रों में से एक है तथा ५१ [[शक्तिपीठ|शक्तिपीठों]] में एक है। यह अब एक छोटा नगर है जो [[दिल्ली]] के उत्तर में हरियाणा राज्य में बने नये कुरुक्षेत्र के आस-पडोस में स्थित है। हर्ष के मूल और उत्पत्ति के संर्दभ में एक [[शिलालेख]] प्राप्त हुई है जो कि गुजरात राज्य के गुन्डा जिले में खोजी गयी है। जब युवेन सांग ने हर्ष से मिलने का फैसला किया तो वह देर रात पहुँचा। वो अपनी सेना लेकर चलता था।था मगर गलती से सेना लेकर महल के बजाय छावनी में पहुँच गया । सैनिकों को लगा की हुन साम्राज्य का कोई सेनापति यहाँ अपनी सेना लेकर पहुँच गया है। उन्होंने सम्राट हर्ष को यह खबर सुनाई तो उसने कहा की मटका अभी कच्चा है । और फिर अपनी 530,5750 सैनिकों की सेना लेकर पहुँच गया । ढोल नगाड़े बजने लगे मशालें जलने लगी तो युवेन सांग को लगा की हर्ष हथियार डालने आया है लेकिन तब ही दूसरी ओर से तीर चलने लगे तो युवेन सांग घबरा गया उसने अपनी छावनी से 58,000 सैनिकों की एक टुकड़ी बुलाई। लेकिन जैसे ही हर्ष आया युवेन सांग समझ गया की उसकी हर्ष की पुरी सेना का दसवाँ हिस्सा भी नही है । युद्ध खत्म होने के बाद युवेन सांग को जंजीर में बांध कर उसके नाक मुंह पर रूमाल बांध कर हर्ष के सामने लाया गया लेकिन वह इतने बुरे तरह से घायल था की वो अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा था जैसे ही उसके नाक पर से रूमाल हटाया गया तो उसने खून अपने मुंह से उगला और बेहोश हो गया । जब वह उठा तब वह कारावास में था फिर कुछ सैनिक आए फिर उसे जंजीर में बांधा नाक मुंह पर रूमाल बांध कर ले गये उसे हर्ष ने अपना रथ दिया रथ पर बैठाया और रथ के पिछले हिस्से से बांध दिया नाक मुंह पर रूमाल बांधा और चीन छोड़ आए इसके बाद चीन पर भी हर्ष का शासन हो गया।
 
==शासन प्रबन्ध==