"महाराणा कुम्भा": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
महाराणा कुम्भकर्ण, महाराणा मोकल के पुत्र थे और उनकी हत्या के बाद गद्दी पर बैठे। उन्होंने अपने पिता के मामा [[राव रणमल|रणमल राठौड़]] की सहायता से शीघ्र ही अपने पिता के हत्यारों से बदला लिया। इनके तीन संतानें थी जिसमें दो पुत्र [[उदयसिंह प्रथम|उदा सिंह]] , [[राणा रायमल]] तथा राणा एक पुुत्री रमाबाई (वागीश्वरी ) थे | सन् १४३७ से पूर्व उन्होंने देवड़ा चौहानों को हराकर [[आबू]] पर अधिकार कर लिया। 1437 ई. में [[मालवा]] के सुलतान [[महमूद खिलजी]] को भी उन्होंने उसी साल [[सारंगपुर]] के पास बुरी तरह से हराया और इस विजय के स्मारक स्वरूप [[चित्तौड़]] का विख्यात [[कीर्तिस्तंभकीर्ति स्तम्भ]] बनवाया। राठौड़ कहीं मेवाड़ को हस्तगत करने का प्रयत्न न करें, इस प्रबल संदेह से शंकित होकर उन्होंने रणमल को मरवा दिया और कुछ समय के लिए [[मंडोर]] का राज्य भी उनके हाथ में आ गया। राज्यारूढ़ होने के सात वर्षों के भीतर ही उन्होंने [[सारंगपुर]], [[नागौर]], [[नराणा]], [[अजमेर]], [[मंडोर]], [[मोडालगढ़]], [[बूंदी]], [[खाटू]], [[चाटूस]] आदि के सुदृढ़ किलों को जीत लिया और [[दिल्ली]] के सुलतान [[सैयद मुहम्मद शाह]] और [[गुजरात]] के सुलतान [[अहमदशाह]] को भी परास्त किया। उनके शत्रुओं ने अपनी पराजयों का बदला लेने का बार-बार प्रयत्न किया, किंतु उन्हें सफलता न मिली। मालवा के सुलतान ने पांच बार मेवाड़ पर आक्रमण किया। नागौर के स्वामी [[शम्स खाँ]] ने गुजरात की सहायता से स्वतंत्र होने का विफल प्रयत्न किया। यही दशा आबू के देवड़ों की भी हुई। मालवा और गुजरात के सुलतानों ने मिलकर महाराणा पर आक्रमण किया किंतु मुसलमानी सेनाएँ फिर परास्त हुई। महाराणा ने अन्य अनेक विजय भी प्राप्त किए। उसने [[डीडवाना(नागौर)]] की नमक की खान से [[कर]] लिया और [[खंडेला]], [[आमेर]], [[रणथंभोर]], [[डूँगरपुर]], [[सीहारे]] आदि स्थानों को जीता। इस प्रकार राजस्थान का अधिकांश और गुजरात, मालवा और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर उसने मेवाड़ को महाराज्य बना दिया।
 
किंतु महाराणा कुंभकर्ण की महत्ता विजय से अधिक उनके सांस्कृतिक कार्यों के कारण है। उन्होंने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया। [[कुम्भलगढ़ दुर्ग|कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला]] उनकी कृति है। [[बंसतपुर]] को उन्होंने पुन: बसाया और श्री [[एकलिंग]] के मंदिर का जीर्णोंद्वार किया। चित्तौड़ का [[कीर्तिस्तंभकीर्ति स्तम्भ|कीर्तिस्तम्भ]] तो संसार की अद्वितीय कृतियों में एक है। इसके एक-एक पत्थर पर उनके शिल्पानुराग, वैदुष्य और व्यक्तित्व की छाप है। अपनी पुत्री [[रमाबाई]] ( वागीश्वरी ) के विवाह स्थल के लिए चित्तौड़ दुर्ग मेंं श्रृंगार चंवरी का निर्माण कराया तथा चित्तौड़ दुर्ग में ही विष्णु को समर्पित कुम्भश्याम जी मन्दिर का निर्माण कराया |
 
मेवाड़ के राणा कुुुम्भा का स्थापत्य युग स्वर्णकाल के नाम से जाना जाता है, क्योंकि कुुुम्भा ने अपने शासनकाल में अनेक दुर्गों, मन्दिरों एंव विशाल राजप्रसादों का निर्माण कराया, कुम्भा ने अपनी विजयों के लिए भी अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण कराया, वीर-विनोद के लेखक श्यामलदस के अनुसार कुुुम्भा ने कुल 32 दुर्गों का निर्माण कराया था जिसमें [[कुम्भलगढ़ दुर्ग|कुभलगढ़]], अलचगढ़, मचान दुर्ग, भौसठ दुर्ग, बसन्तगढ़ आदि मुख्य माने जाते हैं |
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* [[चित्तौड़गढ़]]
* [[कुंभलगढ़]]
* [[विजय स्तम्भ]]
*[[राणा मोकल|महाराणा मोकल]]
*[[महाराणा प्रताप]]
*[[सिसोदिया (राजपूत)|सिसोदिया राजवंश]]
*[[महाराणा प्रताप]]
 
== बाहरी कड़ियाँ==