"महाराणा कुम्भा": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
No edit summary टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 43:
== परिचय ==
महाराणा कुम्भकर्ण, महाराणा मोकल के पुत्र थे और उनकी हत्या के बाद गद्दी पर बैठे। उन्होंने अपने पिता के मामा [[राव रणमल|रणमल राठौड़]] की सहायता से शीघ्र ही अपने पिता के हत्यारों से बदला लिया। इनके तीन संतानें थी जिसमें दो पुत्र [[उदयसिंह प्रथम|उदा सिंह]] , [[राणा रायमल]] तथा राणा एक पुुत्री रमाबाई (वागीश्वरी ) थे | सन् १४३७ से पूर्व उन्होंने देवड़ा चौहानों को हराकर [[आबू]] पर अधिकार कर लिया। 1437 ई. में [[मालवा]] के सुलतान [[महमूद खिलजी]] को भी उन्होंने उसी साल [[सारंगपुर]] के पास बुरी तरह से हराया और इस विजय के स्मारक स्वरूप [[चित्तौड़]] का विख्यात [[
किंतु महाराणा कुंभकर्ण की महत्ता विजय से अधिक उनके सांस्कृतिक कार्यों के कारण है। उन्होंने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया। [[कुम्भलगढ़ दुर्ग|कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला]] उनकी कृति है। [[बंसतपुर]] को उन्होंने पुन: बसाया और श्री [[एकलिंग]] के मंदिर का जीर्णोंद्वार किया। चित्तौड़ का [[
मेवाड़ के राणा कुुुम्भा का स्थापत्य युग स्वर्णकाल के नाम से जाना जाता है, क्योंकि कुुुम्भा ने अपने शासनकाल में अनेक दुर्गों, मन्दिरों एंव विशाल राजप्रसादों का निर्माण कराया, कुम्भा ने अपनी विजयों के लिए भी अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण कराया, वीर-विनोद के लेखक श्यामलदस के अनुसार कुुुम्भा ने कुल 32 दुर्गों का निर्माण कराया था जिसमें [[कुम्भलगढ़ दुर्ग|कुभलगढ़]], अलचगढ़, मचान दुर्ग, भौसठ दुर्ग, बसन्तगढ़ आदि मुख्य माने जाते हैं |
पंक्ति 59:
* [[चित्तौड़गढ़]]
* [[कुंभलगढ़]]
*[[महाराणा प्रताप]] ▼
*[[सिसोदिया (राजपूत)|सिसोदिया राजवंश]]
▲*[[महाराणा प्रताप]]
== बाहरी कड़ियाँ==
|