"वाल्मीकि": अवतरणों में अंतर

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== आदि कवि वाल्मीकि ==
महाकवि वाल्मीकि का वंश इस प्रकार है -ब्रह्मा, प्रचेता और वाल्मीकि। वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड सर्ग 16 श्लोक में वाल्मीकि ने कहा है, राम मैं प्रचेता का दशवाँ पुत्र हुँ। मनुस्मृति में लिखा है प्रचेता ब्रह्मा का पुत्र था। रामायण के नाम से प्रचलित कई पुस्तको में भी महाकवि वाल्मीकि ने अपना जन्म ब्राह्मण कुल में बताया है। एक बार भगवान वाल्मीकि एक [[क्रौंच|क्रौंच]] पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलियेविष्णु ने प्रेम-मग्न क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
वाल्मीकि रामायण महाकाव्य की रचना करने के पश्चात आदिकवि कहलाए। वे स्वयं ब्राह्मण ही थे,
महाकवि वाल्मीकि का वंश इस प्रकार है -ब्रह्मा, प्रचेता और वाल्मीकि। वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड सर्ग 16 श्लोक में वाल्मीकि ने कहा है, राम मैं प्रचेता का दशवाँ पुत्र हुँ। मनुस्मृति में लिखा है प्रचेता ब्रह्मा का पुत्र था। रामायण के नाम से प्रचलित कई पुस्तको में भी महाकवि वाल्मीकि ने अपना जन्म ब्राह्मण कुल में बताया है। एक बार वाल्मीकि एक [[क्रौंच|क्रौंच]] पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलिये ने प्रेम-मग्न क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
 
:'''मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
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अपने महाकाव्य "रामायण" में अनेक घटनाओं के घटने के समय [[सूर्य]], [[चंद्र]] तथा अन्य [[नक्षत्र]] की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे [[ज्योतिष]] विद्या एवं [[खगोल]] विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे।
 
अपने वनवास काल के मध्य "राम" महर्षिभगवान वाल्मीकि के आश्रम में भी गये थे।
 
देखत बन सर सैल सुहाए।
वाल्मीक आश्रम प्रभु आए॥
 
तथा जब "[[राम]]" ने अपनी पत्नी [[सीता]] का परित्याग कर दिया तब महर्षि वाल्मीक ने ही सीता को आसरा दिया था।
 
तथा जब "[[राम]]" ने अपनी पत्नी [[सीता]] का परित्याग कर दिया तब महर्षिभगवान वाल्मीक ने ही सीता को आसरा दिया था।
उपरोक्त उद्धरणों से सिद्ध है कि महर्षि वाल्मीकि को "राम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं का पूर्णरूपेण ज्ञान था। उन्होने श्रीहरि विष्णु को दिये श्राप को आधार मान कर अपने महाकाव्य "रामायण" की रचना की।
 
उपरोक्त उद्धरणों से सिद्ध है कि महर्षिभगवान वाल्मीकि को "राम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं का पूर्णरूपेण ज्ञान था। उन्होने श्रीहरि विष्णु को दिये श्राप को आधार मान कर अपने महाकाव्य "रामायण" की रचना की।
हिंदुओं के प्रसिद्ध महाकाव्य वाल्मीकि जी रामायण, जिसे कि आदि रामायण भी कहा जाता हैं तथा जिसमें भगवान श्रीरामचन्द्र के निर्मल एवं कल्याणकारी चरित्र का वर्णन हैं, के रचयिता महर्षि वाल्मीकि जी के विषय में अनेक प्रकार की भ्रांतियाँ प्रचलित हैं जिसके अनुसार उन्हें निम्नवर्ग का बताया जाता हैं किन्तु वास्तविकता इसके विरुद्ध हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं कि हिंदुओं के द्वारा हिंदू संस्कृति को भुला दिये जाने के कारण ही इस प्रकार की भ्रांतियाँ फैली हैं। वाल्मीकि जी रामायण में स्वयं वाल्मीकि जी ने श्लोक संख्या ७/९३/१६, ७/९६/१८ तथा ७/१११/११ में लिखा हैं कि वाल्मीकि जी प्रचेता के पुत्र हैं। मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया हैं। बताया जाता हैं कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी हैं तथा वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे। यह भी माना जाता हैं कि वाल्मीकि जी वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे।
 
महर्षि कश्यप तथा अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी तथा भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी हैं, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता हैं। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढंक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि जी कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि जी कहने लगे।
 
महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण मे स्वयं कहा हैं कि : [http://www.vkjpandey.in/2018/10/biography-of-maharishi-valmiki.html?m=1]
 
'''प्रेचेतसोंह दशमाः पुत्रों रघवनंदन।'''
 
'''मनसा कर्मणा वाचा, भूतपूर्व न किल्विषम्।।'''
 
भगवान् वाल्मीकि जी जी ने रामायण में राम को सम्बोधित करते हुए लिखा हैं कि हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हू तथा राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया हैं।[http://www.vkjpandey.in/2018/10/biography-of-maharishi-valmiki.html?m=1]
 
जिससे कि रत्नाकर की कहानी मिथ्या ही प्रतीत होती हैं क्योकि ऐसा ऋषि जिसके पिता स्वयं एक मुनि हो तो भला वह डाकू कैसे बन सकता हैं तथा वह स्वयं राम के सामने सीता जी की पवित्रता के बारे मे रामायण जैसी रचना मे अपना परिचय देता हैं तो वह गलत प्रतीत नहीं होता।
 
वाल्मीकि जी महा कवी ने संस्कृत में महा काव्य रामायण की रचना की थी, जिसकी प्रेरणा उन्हें ब्रह्मा जी ने दी थी। रामायण में भगवान विष्णु के अवतार राम चन्द्र जी के चरित्र का विवरण दिया हैं। इसमें  23 हजार श्लोक्स लिखे गए हैं। इनकी अंतिम साथ किताबों में वाल्मीकि जी महर्षि के जीवन का विवरण हैं।
 
वाल्मीकि जी महर्षि ने राम के चरित्र का चित्रण किया, उन्होंने माता सीता को अपने आश्रम में रख उन्हें रक्षा दी। पश्चात में, राम एवम सीता के पुत्र लव कुश को ज्ञान दिया।
 
== जीवन परिचय ==