"गंगा प्रदूषण नियंत्रण": अवतरणों में अंतर

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16:58, 30 जून 2009 का अवतरण

गंगा नदी में होने वाला प्रदूषण पिछले कई सालों से भारतीय सरकार और जनता के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इस नदी उत्तर भारत की सभ्यता और संस्कृति की सबसे मजबूत आधार है। उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर और उद्योग करोड़ों लोगों की श्रद्धा की आधार गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे हैं और यही उसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप साबित हो रहे हैं।

प्रदूषण का कारण

ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजलीघर से लेकर रासायनिक खाद तक के कारख़ाने लगे हैं। कानपुर का जाजमऊ इलाक़ा अपने चमड़ा उद्योग के लिए मशहूर है। यहाँ तक आते-आते गंगा का पानी इतना गंदा हो जाता है कि उसमें डुबकी लगाना तो दूर, वहाँ खड़े होकर साँस तक नहीं ली जा सकती। गंगा की इसी दशा को देख कर मशहूर वकील और मैगसेसे पुरस्कार विजेता एमसी मेहता ने १९८५ में गंगा के किनारे लगे कारख़ानों और शहरों से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। फिर सरकार ने गंगा सफ़ाई का बीड़ा उठाया और गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई।

गंगा एक्शन प्लान

इस योजना की बदौलत गंगा के किनारे बसे शहरों और कारख़ानों में गंदे और जहरीले पानी को साफ़ करने के प्लांट लगाए गए। इनसे गंगा के पानी में थोड़ा सुधार ज़रूर हुआ लेकिन गंगा में गंदगी का गिरना बदस्तूर जारी रहा। अंत में यह समझा गया कि गंगा एक्शन प्लान असफल हो गाया। इस प्लान की सबसे बड़ी ख़ामी शायद ये थी कि उसमें गंगा के बहाव को बढ़ाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। गंगा में ग्लेशियरों और झरनों से आने वाले पानी को तो कानपुर से पहले ही नहरों में निकाल लिया जाता है। ज़मीन का पानी गंगा की धारा बनाए रखता था लेकिन नंगे पहाड़ों से कट कर आने वाली मिट्टी ने गंगा की गहराई कम करके अब इस स्रोत को भी बंद कर दिया है। बनारस के 'स्वच्छ गंगा अभियान' के संचालक प्रोफ़ेसर वीरभद्र मिश्र इस बारे में चिंतित हैं और बताते हैं कि गंगा पर कितना दबाव है। उन्होंने कहा कि गंगा दुनिया की एकमात्र नदी है जिस पर चालीस करोड़ लोगों का अस्तित्व निर्भर है। इसलिए उस पर दबाव भी ज़्यादा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि गंगा को बचाने के लिए सबसे पहले हिमालय के ग्लेशियरों को बचाना होगा।

स्वच्छ गंगा अभियान

संदर्भ