'''विक्रेता द्वारा उप्युक्त विक्रय परिमाण का निर्धारण'''
पूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता का मांग वक्र पुर्णतः लोचशील होता है क्योंकि वह बाजार निर्धारित मूल्य पर जितना चाहे उत्पादन कर सकता है और उसे बेच सकता हैा अतः उसे उप्युक्त परिमाण निर्धारित करने केलिये अपने सीमांत लागत वक्र का निर्धरननिर्धरण करना होता ह। सीमांत लागत का अर्थ है वर्तमान स्थिति में एक और वस्तु के उत्पाद करने कीका कीमत्।लागत। सीमांत लागत वक्र अन्ग्रेजीअंग्रेजी के अक्षर 'U' के आकार का होता है। इस्का अर्थ है कि जब उत्पादन क्षमता का पूरा प्रयोग नहीं हो रहा है तब सीमांत लागत घट रहा होता है, एक निश्चित क्षमता तक पहुंचने के बाद यह बढ्नेबढ़ने लगता है। जिस बिन्दु पर सीमांत लागत्लागत वक्र उत्पादक के मांग वक्र को काट्ताकाटता है, उस बिन्दु पर उपयुक्त उत्पादन का निर्धरणनिर्धारण होता है। <br />
जब उत्पादक एक वस्तु का उत्पादन करता है तो उसका मुख्य उद्देश्य होता है लाभ्।लाभ। जब सीमांत लागत अर्थात एक इकाई के उत्पादबनउत्पादन का लागत बाजार में स्थापित वस्तु के मुल्य से ऊपर चला जाता है तो इसका अर्थ है कि विक्रेता को उसके उत्पादन से घाटा होगा। अतः जिस बिन्दु पर्पर सीमांत लागत वक्र, विक्रेता के मांग वक्र को काट कर उसके ऊपर चला जाता है, उस बिन्दु के पार उत्पादन करने से विक्रेता को अपना उत्पाद लागत से कम भाव पर बेचना होगा। अतः उत्पादक इस बिन्दु पर पहुंच्ने के उपरान्त उत्पादन रोक देता है।