"अजातशत्रु (मगध का राजा)": अवतरणों में अंतर

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}}
 
'''अजातशत्रु''' (लगभग 493 ई. पू.<ref name=ROMILLA>{{cite book| last = थापर| first = रोमिला| title =भारत का इतिहास | url =http://books.google.co.in/books?id=Cz0xygAACAAJ|publisher = राजकमल प्रकाशन| isbn = 81-267-0568-X| page = 49 }}</ref>) [[मगधकाशी]] का एक प्रतापी सम्राट और [[बिंबिसार]] का पुत्र जिसने पिता को मारकर राज्य प्राप्त किया। उसने अंग, लिच्छवि, वज्जी, कोसल तथा काशीजैसे जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की।
अजातशत्रु के समय की सबसे महान घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण थी (464 ई. पू.)। उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजात शत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने [[राजगृह]] की पहाड़ी पर स्तूप बनवाया। आगे चलकर राजगृह में ही वैभार पर्वत की सप्तपर्णी गुहा से बौद्ध संघ की प्रथम [[बौद्ध संगीति|संगीति]] हुई जिसमें सुत्तपिटक और विनयपिटक का संपादन हुआ। यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ। उसके समय में काशी की सेना में 70 हजार से भी ज्यादा हाथी, 53 लाख पैदल सैनिक, 64 लाख घुड़सवार सैनिक, 21 लाख रथ थे। जब महाराज प्रवर्तक ने कहा कि भारत के ऊपर सिकंदर महान का खतरा मंडरा रहा है तो अजातशत्रु हँसने लगा और कहा की 26 वर्षीय एक युवक आपके लिए खतरा है एक बार वो काशी प्रवेश तो करे जिंदा नहीं जाएगा यहाँ से। जब सिकंदर को समाचार मिला अजातशत्रु की सैन्य शक्ति के बारे में तो उसने काशी पर चढ़ाई करने की अपनी योजना को त्याग दिया ।
 
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