"छन्दशास्त्र": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1:
{{Italic title}}
 
'''छन्दःसूत्र''' [[पिंगल]] द्वारा रचित [[छन्द]] का मूल ग्रन्थ है और इस समय तक उपलब्ध है। यह [[सूत्र]]शैली में है और बिना [[भाष्य]] के अत्यन्त कठिन है। दसवींइसपर शतीटीकाएँ मेंतथा [[हलायुध]]व्याख्याएँ हो चुकी हैं। यही छन्दशास्त्र का सर्वप्रथम ग्रन्थ माना जाता है। इसके नेपश्चात् इस शास्त्र पर '[[मृतसंजीवनीसंस्कृत साहित्य]]' नामकमें भाष्यअनेक ग्रन्थों की रचना की।हुई।
 
इस ग्रन्थ में [[पास्कल त्रिभुज]] का स्पष्ट वर्णन है। इस ग्रन्थ में इसे '[[मेरु प्रस्तार|मेरु-प्रस्तार]]' कहा गया है।
 
इसमें आठ अध्याय हैं।
 
दसवीं शती में [[हलायुध]] ने इस पर '[[मृतसञ्जीवनी]]' नामक भाष्य की रचना की। इस ग्रन्थ में [[पास्कल त्रिभुज]] का स्पष्ट वर्णन है। इस ग्रन्थ में इसे '[[मेरु प्रस्तार|मेरु-प्रस्तार]]' कहा गया है। इसमें आठ अध्याय हैं।
 
;अन्य टीकाएं-
 
* '''लक्ष्मीनाथसुतचन्द्रशेखर''' -- पिंगलभावोद्यातपिङ्गलभावोद्यात
* '''चित्रसेन''' -- पिंगलटीकापिङ्गलटीका
* '''रविकर ''' -- पिंगलसारविकासिनीपिङ्गलसारविकासिनी
* '''राजेन्द्र दशावधान ''' -- पिंगलतत्वप्रकाशिकापिङ्गलतत्वप्रकाशिका
* '''लक्ष्मीनाथ ''' -- पिंगलप्रदीपपिङ्गलप्रदीप
* '''वंशीधर ''' -- पिंगलप्रकाशपिङ्गलप्रकाश
* '''वामनाचार्य ''' -- पिंगलप्रकाशपिङ्गलप्रकाश
 
==इन्हें  भी  देखें==
* [[पिंगल]]
* [[हलायुध]]