"समराङ्गणसूत्रधार": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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==परिचय==
इस ग्रन्थ में ८३ अध्याय हैं जिनमें नगर-योजना, भवन शिल्प, मंदिर शिल्प, [[मूर्तिकला]] तथा [[
===विमानविद्या===
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:संगृहीतश्च दत्तश्च पूरित: प्रतनोदित:।
:मरुद् बीजत्वमायाति यंत्रेषु जलजन्मसु॥ (समरांगण-३१)
पानी को संग्रहित किया जाए, उसे प्रभावित और पुन: क्रिया हेतु उपयोग किया जाए, यह मार्ग है जिससे बल का शक्ति के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी प्रक्रिया का विस्तार से इसी अध्याय में वर्णन है।
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