"नील हरित शैवाल": अवतरणों में अंतर

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|authoryear=२००४author=अहोरेन ओरेन
|year=२००४
|title=A proposal for further integration of the cyanobacteria under the Bacteriological Code
|journal=Int. J. Syst. Evol. Microbiol.
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==धान के खेत में नील हरित काई का उपचार==
ब्यासी पद्धति और रोपा पद्धति से ही धान की खेती में नील हरित काई का उपयोग लाभप्रद सिद्ध हुआ है। धान के ब्यासी की स्थिति में ब्यासी और चलाई करने के अथवा रोपा वाले खेत में धान के पौधों को रोपने के 6 से 10 दिन के भीतर, नील हरित काई के 10 किलोग्राम सुखे पाउडर को पूरे खेत में छिड़क कर उपचारित कर दिया जाता है। ध्यान रहे नील हरित काई को उपचारित करने के पूर्व उस खेत में आवश्यकता से अधिक पानी को निकाल कर करीब 8 से 10 से.मी. पानी ही रखें और इतना ही पानी स्थिर रूप से कम से कम 20 दिनों तक इस खेत में कायम रखें। इससे नील हरित काई की बढोत्तरी और फैलाव ठीक तरह से होता है। काई की यही बढोत्तरी और फैलाव वायुमण्डलीय नत्रजननत्रज nन को स्थिर करने में सहायक होता है और पौधों के पोषण में उपयोगी होता है। नील हरित काई के उपचार में निम्नलिखित बातों का अवश्य ध्यान देना चाहिये-
 
*1. ब्यासी करने के बाद अथवा रोपा लगाने के 6 से 10 दिन के भीतर ही नील हरित काई का उपचार किया जाना आवश्यक है। इस काई के उपचार के पहले ध्यान रहे, धान के खेत में 8 से 10 से.मी. से ज्यादा पानी न हो। खेत सूखने न पाये इसके लिये खेत के मेड़ों में से चूहे के बिल आदि छेदों को तथा मुही को बंद कर दिया जाय।