"पंडित रामदहिन ओझा": अवतरणों में अंतर

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ओझा अपनी लेखनी और आजादी के लिए जन आंदोलन में भाषणों के आरोप में कई बार गिरफ्तार किए गये। अपनी क्रांतिकारी गतिविधि के चलते पंडित रामदहिन ओझा को बंगाल और फिर बाद में बलिया और गाजीपुर से निष्कासन का आदेश थमा दिया गया। उनकी 'लालाजी की याद में' और 'फिरंगिया' जैसी कविताओं पर प्रतिबंध लगा। वर्ष 1921 में छह अन्य सेनानियों के साथ बलिया में पहली गिरफ्तारी में बांसडीह कस्बे के जिन सात सेनानियों को गिरफ्तार किया गया, पंडित रामदहिन ओझा उनमें सबसे कम उम्र के थे। [[महात्मा गांधी|गांधी जी]] ने इन सेनानियों को असहयोग आन्दोलन का 'सप्तऋषि' कहा था। वे 1922 और 1930 में फिर गिरफ्तार किये गये। अंतिम गिरफ्तारी में 18 फरवरी 1931 का दिन भी आया जब रात के अंधेरे में बलिया के जेल और जिला प्रशासन ने मृतप्राय सेनानी को उनके मित्र, प्रसिद्ध वकील ठाकुर राधामोहन सिंह के आवास पहुंचा दिया था। अखिल भारतीय कांग्रेस की पद्मकान्त मालवीय कमेटी ने पाया था कि पंडित ओझा के खाने में धीमा जहर मिलाया जाता रहा। 'बलिया में सन बयालीस की जनक्रांति' के लेखक दुर्गाप्रसाद गुप्त मानते हैं कि पंडित रामदहिन ओझा की शहादत से बलिया के सेनानियों में ऐसी ऊर्जा का संचार किया, जिसका प्रस्फुटन 1942 की जन क्रांति में दिखाई देता है।
 
==सन्दर्भ==
== सन्दर्भ - भारतीय पत्रकारिता कोश (भाग-दो) संपादक, विजयदत्त श्रीधर ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
==इन्हें भी देखें==
== याद किए गए पं.रामदहिन ओझा ==
 
=== लेखनी ने छुड़ा दिये थे अंग्रेजों के छक्के ===
 
=== ओझा के बगावती तेवर से डरते थे अंग्रेज ===
 
==बाहरी कड़ियाँ==