"छन्दशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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पिंगल के छन्दशास्त्र में ८ अध्याय हैं। यह [[सूत्र]]-शैली में लिखा गया है। ८वें अध्याय में ३५ सूत्र हैं। जिसमें से अन्तिम १६ सूत्र (८.२० से ८.३५ तक) संयोजिकी से सम्बन्धित हैं। केदारभट्ट द्वारा रचित वृत्तरत्नाकर में ६ अध्यaय हैं जिसका ६ठा अध्याय पूरी तरह से संयोजिकी के [[कलनविधि|कलनविधियों]] को समर्पित है।
 
===प्रस्तार के लिए पिङ्गल के सूतर===
: ''द्विकौ ग्लौ 8.20
:: शब्दार्थ- एक अक्षर वाले छन्द के ग् - गुरु, ल् - लघु, द्विको - दो प्रकार के भेद होते हैं ॥
: ''मिश्रौ च 8.21
:: शब्दार्थ- दो अक्षरात्मक पाद वाले छन्द का प्रस्तार करने पर द्विकौ अर्थात् दो बार आवृत्त, ग्लौ- गुरु और लघु अक्षर, मिश्रौ च- मिश्रित रूप से रखे जाते हैं । अर्थात् गुरु के साथ गुरु (ऽऽ), लघु के साथ गुरु (।ऽ), गुरु के साथ लघु (ऽ।) और लघु के साथ लघु ( । ।) । इस प्रकार दो अक्षर वाले छन्द के 4 भेद हो जाते हैं ।
: ''पृथग् ग्लोऽमिश्राः 8.22
:: शब्दार्थ- पृथक्- तीन अक्षरात्मक छन्द के प्रस्तार में तृतीय पंक्ति को पृथक् रखें । ग्लः द्विधाः- गुरु-लघु अक्षरों को पूर्व पंक्ति की अपेक्षा दुगुना करें, अमिश्राः- और उन्हें मिश्रित न करते हुए रखें । अर्थात् द्वितीय पंक्ति में 2 गुरु, 2 लघु का क्रम चला है, उसको तृतीय पंक्ति में दुगुना करके 4 गुरु, 4 लघु का क्रम चलावें। यह ध्यान रखें कि प्रथम पंक्ति में 1 गुरु, 1 लघु का क्रम है। द्वितीय पंक्ति में 2 गुरु, 2 लघु का क्रम है। तृतीय पंक्ति में दुगुना करने से 4 गुरु, 4 लघु का क्रम चलेगा ।
: '' वसवस्त्रिकाः 8.23
:: शब्दार्थ- त्रिकोः - तीन अक्षरात्मक छन्द के प्रस्तार में, वसवः - वसु अर्थात् 8 भेद होते हैं। उनके ही नाम मगण आदि हैं।
 
===प्रस्तार के लिए केदारभट्ट के सूतर===
 
==इन्हें भी देखें==