"हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
पंक्ति 7:
=== पश्चिमी हिन्दी ===
'''पश्चिमी हिंदी''' का विकास शौरसैनी अपभ्रंश से हुआ है। इसके अंतर्गत पाँच बोलियाँ हैं - [[खड़ी बोली]], [[बांगरू]], [[ब्रज]], [[कन्नौजी]] और बुंदेली। खड़ी बोली अपने मूल रूप में मेरठ, बिजनौर के आसपास बोली जाती है। इसी के आधार पर आधुनिक हिंदी और उर्दू का रूप खड़ा हुआ। बांगरू को जाटू या हरियाणवी भी कहते हैं। यह पंजाब के दक्षिण पूर्व में बोली जाती है। कुछ विद्वानों के अनुसार बांगरू [[खड़ी बोली]] का ही एक रूप है जिसमें पंजाबी और [[राजस्थानी]] का मिश्रण है। ब्रजभाषा [[मथुरा]] के आसपास ब्रजमंडल में बोली जाती है। हिंदी साहित्य के मध्ययुग में ब्रजभाषा में उच्च कोटि का काव्य निर्मित हुआ। इसलिए इसे बोली न कहकर आदरपूर्वक भाषा कहा गया। मध्यकाल में यह बोली संपूर्ण हिंदी प्रदेश की साहित्यिक भाषा के रूप में मान्य हो गई थी। पर साहित्यिक ब्रजभाषा में ब्रज के ठेठ शब्दों के साथ अन्य प्रांतों के शब्दों और प्रयोगों का भी ग्रहण है। कन्नौजी [[गंगा]] के मध्य दोआब की बोली है। इसके एक ओर ब्रजमंडल है और दूसरी ओर अवधी का क्षेत्र। यह ब्रजभाषा से इतनी मिलती जुलती है कि इसमें रचा गया जो थोड़ा बहुत साहित्य है वह ब्रजभाषा का ही माना जाता है। बुंदेली [[बुंदेलखंड]] की उपभाषा है। बुंदेलखंड में ब्रजभाषा के अच्छे कवि हुए हैं जिनकी काव्यभाषा पर बुंदेली का प्रभाव है।
=== पूर्वी हिन्दी ===
|