"अनुवाद": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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जहाँ अनुवाद दुभाषिये की भूमिका में काम करता है, वहाँ वह केवल आशुअनुवाद कर पाता है। दो दूरस्थ देशों के भिन्न भाषा-भाषी जब आपस में बातें करते हैं, तो उनके बीच दुभाषिया संवाद का माध्यम बनता है। ऐसे अवसरों पर वे अनुवाद शब्द और भाव की सीमाओं को तोड़कर अनुवादक की सत्वर अनुवाद क्षमता पर आधारित हो जाता है। उसके पास इतना समय नहीं होता है कि शब्द के सही भाषायी पर्याय के बारे में सोचे अथवा कोशों की सहायता ले सके। कई बार ऐसे दुभाषिये के आशुअनुवाद के कारण दो देशों में तनाव की स्थिति भी बन जाती है। आशुअनुवाद ही अब भाषांतरण के रूप में चर्चित है।
===रूपान्तरण===
अनुवाद के इस प्रभेद में अनुवादक मूलभाषा से लक्ष्यभाषा में केवल शब्द और भाव का अनुवादन नहीं करता, अपितु अपनी प्रतिभा और सुविधा के अनुसार मूल रचना का पूरी तरह रूपांतरण कर डालता है। [[विलियम शेक्सपीयर]] के प्रसिद्ध नाटक 'मर्चेन्ट ऑफ वेनिस' का अनुवाद [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] ने 'दुर्लभ बन्धु' अर्थात् 'वंशपुर का महाजन' नाम से किया है जो रूपांतरण के अनुवाद का अन्यतम उदाहरण है। मूल नाटक के एंटोनियो, बैसोलियो, पोर्शिया, शाइलॉक जैसे नामों को भारतेंदु ने क्रमशः अनंत, बसंत, पुरश्री, शैलाक्ष जैसे रूपांतर प्रदान किये हैं। ऐसे रूपांतरण में अनुवाद की मौलिकता सबसे अधिक उभरकर सामने आती है।
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