"कुमारसंभवम्": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 33:
 
===प्रथम सर्ग===
कालिदास ने कुमारसम्भव को हिमालय-वर्णन से आरम्भ किया है। प्रथम सर्ग के प्रारम्भिक सत्रह पद्यों में कवि ने हिमालय पर्वत का भव्य व गरिमापूर्ण चित्रण करते हुए इसकी विविध छवियों, प्राकृतिक वैभव इसके निवासियों के कार्य-कलापों तथा पर्वतराज के पुराकथात्मक व्यक्तित्व का उदात्त चित्रण किया है। तत्पश्चात् पार्वती के जन्म, बाल्यकाल, यौवन-प्राप्ति व विलक्षण सौंदर्य का परिचय देते हुए नारद की भविष्यवाणी का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार पार्वती का विवाह शिव के साथ ही होगा। इस भविष्वाणी में विश्वास कर पिता हिमालय पुत्री को कैलास पर्वत पर तपस्यारत भगवान् शिव की सेवा के लिये भेज देता है।
: ''अस्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः ।
: ''पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्यां इव मानदण्डः ॥
: (अर्थ: (भारतवर्ष के) उत्तर दिशा में देवताओं की आत्मा वाला पर्वतों का राजा हिमालय है, जो पूर्व और पश्चिम दोनों समुद्रों का अवगाहन करके पृथ्वी के मापने के दण्ड के समान स्थित है। तात्पर्य यह है कि हिमालय का विस्तार ऐसा है कि वह पूर्व और पश्चिम दोनों दिशाओं के समुद्रों को छू रहा है।)
 
तत्पश्चात् पार्वती के जन्म, बाल्यकाल, यौवन-प्राप्ति व विलक्षण सौंदर्य का परिचय देते हुए नारद की भविष्यवाणी का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार पार्वती का विवाह शिव के साथ ही होगा। इस भविष्वाणी में विश्वास कर पिता हिमालय पुत्री को कैलास पर्वत पर तपस्यारत भगवान् शिव की सेवा के लिये भेज देता है।
 
===द्वितीय सर्ग===