"राजमहल": अवतरणों में अंतर

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[[पुराण|पुराणों]] में केवल राजाओं और देवताओं के गृह को प्रासाद कहा है। आकृति के भेद से पुराणों में प्रासाद के पाँच भेद किए गए हैं— चतुरस्र, चतुरायत, वृत्त, पृत्ताय और अष्टास्र। इनका नाम क्रम से वैराज, पुष्पक, कैलास, मालक और त्रिविष्टप है। भूमि, अण्डक, शिखर आदि की न्यूनाधिकता के कारण इन पाँचों के नौ-नौ भेद माने गए हैं। जैसे-
* '''वेराज''' के: मेरु, मन्दर, विमान, भद्रक, सर्वतोभद्र, रुचक, नन्दन, नन्दिवर्धन और, श्रीवत्स;
* '''पुष्पक''' के: वलभी, गृहराज, शालागृह, मन्दिर, विमान, ब्रह्ममन्दिर, भवन, उत्तम्भ और, शिविकावेश्म;
* '''कैलास''' के: वलय, दुन्दुभि, पद्म, महापद्म, भद्रक सर्वतोभद्र;, रुचक, नंदननन्दन, गुवाक्ष या गुवावृत्त;
* '''मालव''' के: गज, वृषभ, हंस, गरुड़, सिंह, भूमुख, भूवर, श्रीजय और, पृथिवीधर;
* '''त्रिविष्टप''' के: वज्र, चक्र, मुष्टिक या वभ्रु, वक्र, स्वस्तिक, खड्ग, गदा, श्रीवृक्ष और, विजय।
 
== इन्हें भी देखें ==