"गण्डकी नदी": अवतरणों में अंतर
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==गंडक परियोजना==
यह [[भारत]] की एक प्रमुख [[नदी घाटी परियोजना]] हैं। गंडक नदी पर बिहार के [[बाल्मीकि नगर]] मे बैराज बनाया गया। इसी बैराज से चार नहरें सम्मिलित हैं, जिसमें से दो नहरें भारत मे और दो नहर नेपाल में हैं।<ref>http://nihroorkee.gov.in/Gangakosh/tributaries/gandak.htm</ref> यहाँ १५ मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और यहाँ से निकाली गयी नहरें चंपारण के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से की सिंचाई करतीं है।
यह परियोजना बहुत पुरानी है। गंडक नहर परियोजना के लिए स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं [[महराजगंज]] के तत्कालिन सांसद [[शिब्बन लाल सक्सेना]] ने अथक प्रयास एवं लंबा अनशन किया। उन्होने 1957 में 11 प्रधानमन्त्री को ११ पत्र लिखे। उस समय नेपाल व बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिले बाढ़ व सूखा की त्रासदी झेल रहे थे। नहरों के न होने के कारण नेपाल के बी गैप नारायणी नदी पर गंडक परियोजना स्वीकृत कराने के लिए अनुरोध किया। पत्राचार के बाद भी जब कोई परिणाम नहीं निकला तो उन्होंने संसद भवन के सामने 1957 में आमरण अनशन शुरू कर दिया, जो 28 दिन तक चला। उस दौरान केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। उनके अनशन की गूंज से सरकार जागी। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद गंडक परियोजना के लिए स्वीकृति मिल गई। इसके बाद प्रो. शिब्बन लाल ने सरकार को नहर के लिए किसानों से जमीन दिलवाने की भी पहल की। इसके लिए वे गांव-गांव गए, किसानों को तैयार किया और उचित मुआवजा दिलाकर जमीन हस्तांरित कराई। इससे परियोजना पर काम शुरू हो सका। इससे नेपाल, बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में नहरों का जाल बिछा और सिंचाई की क्षमता 18800 क्यूसेक तक जा पहुंची। आज इसी परियोजना के कारण देवरिया, महराजगंज, कुशीनगर व पश्चिमी चंपारण के इलाकों के खेत लहलहा रहे हैं।
इतिहास की एक सचाई यह भी है कि स्वीकृति मिलने के बावजूद परियोजना को मूर्त रूप देने में सबसे बड़े बाधक स्थानीय जमींदार बन गए थे। प्रो. लाल ने जमींदारों से भी मुकाबला किया और जमीन देने के लिए काफिले के साथ उनके गांवों का दौरा किया।
==सन्दर्भ==
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