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= इन्द्रकील पर्वत =
इन्द्रकील पर्वत [[उत्तराखण्ड|उत्तराखंड]] के [[उत्तरकाशी]] जिले के [[Dharasu|धरासु]] नामक स्थान ([[गंगोत्री]] एवं [[यमुनोत्री]] राजमार्ग को जोड़ने वाला स्थान) से लगभग 13 किलोमीटर (5 किलोमीटर मोटर मार्ग एवं 8 किलोमीटर पैदल मार्ग ) की दूरी पर स्थित है। इंद्रकील का स्थानीय नाम इंदल -कयाण है। इस स्थान का वर्णन [[किरातार्जुनीयम्]] (महाकवि भारवि द्वारा सातवीं शती ई. में रचित महाकाव्य) तथा [[शिव पुराण|शिवपुराण]] के रुद्र संहिता एवं [[महाभारत]] के [[वन पर्व]] (कैरात पर्व) खंड में वर्णित है। पर्वत के पूर्वी हिस्से से दो गाड (उपनदी) पर्वत के दोनों तरफ निकलती हुए [[भागीरथी नदी]] से मिलती है इस प्रकार पर्वत के उत्तर एवं दक्षिण में दो गाड (धनारी गाड एवं गमरी गाड) एवं पश्चिमी का तलहटी भाग भागीरथी से जुड़ा है । मान्यता है कि पर्वत के ऊपरी हिस्से पर [[अर्जुन]] की [[इन्द्र]] से भेंट हुई एवं [[इन्द्र]] के कहने पर [[भागीरथी नदी]] तट पर [[अर्जुन]] ने [[महाभारत]] काल में तपस्या की और उन्हें महादेव के दर्शन [[किरात]] रूप में हुऐ। कुछ [[किंवदंती|किवदंती]] एवं जनश्रुतियों के आधार पर [[इन्द्र]] के धरती पर अगर कहीं सभा लगती है तो वह इंद्रकील पर्वत पर और [[स्वर्ग लोक|स्वर्ग]] की [[अप्सरा]] एवं परियां को स्थानीय भाषा में आछरी एवं मात्री कहा जाता है। जिस स्थान पर अर्जुन ने [[शिवलिंग|शिव लिंग]] की पूजा अर्चना की थी वहां अभी भी किरात महादेव के रूप में स्थानीय लोगो द्वारा पूजा जाता है जो कि इन्द्रकील पर्वत के तलहटी में स्थित है। इद्रकील पर्वत के मध्य में श्वरी का दयूल नामक स्थान पर माता किराती, राजराजेश्वरी के स्वरूप में पूजी जाती है।
 
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