"बाहुबली": अवतरणों में अंतर

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[[File:भरत-बाहुबली युद्ध.jpg|thumb|[[भरत चक्रवर्ती]] और बाहुबली के बीच हुए युद्ध का चित्रण]]
बाहुबली का जन्म ऋषभदेव और सुनंदा के यहाँ इक्षवाकु कुल में अयोध्या नगरी में हुआ था। उन्होंने चिकित्सा, तीरंदाज़ी, पुष्पकृषि और रत्नशास्त्र में महारत प्राप्त की। उनके पुत्र का नाम सोमकीर्ति था जिन्हें महाबल भी कहा जाता है।
 
जैन ग्रंथों के अनुसार जब ऋषभदेव ने संन्यास लेने का निश्चय किया तब उन्होंने अपना राज्य अपने १०० पुत्रों में बाँट दिया।{{sfn|Jain|2008|p=79, 108}} भरत को विनीता (अयोध्या) का राज्य मिला और बाहुबली को अम्सक का जिसकी राजधानी पोदनपुर थी। [[भरत चक्रवर्ती]] जब छ: खंड जीत कर अयोध्या लौटे तब उनका चक्र-रत्न नगरी के द्वार पर रुक गया। जिसका कारण उन्होंने पुरोहित से पूछा। पुरोहित ने बताया की अभी आपके भाइयों ने आपकी आधीनता नहीं स्वीकारी है। भरत चक्रवर्ती ने अपने सभी ९९ भाइयों के यहाँ दूत भेजे। ९८ भाइयों ने अपना राज्य भारत को दे दिया और जिन दीक्षा लेकर [[जैन मुनि]] बन गए। बाहुबली के यहाँ जब दूत ने भरत चक्रवर्ती का अधीनता स्वीकारने का सन्देश सुनाया तब बाहुबली को क्रोध आ गया। उन्होंने भरत चक्रवर्ती के दूत को कहा की भरत युद्ध के लिए तैयार हो जाएँ।{{sfn|चंपत राय जैन|१९२९|p=143}}
 
सैनिक-युद्ध न हो इसके लिए मंत्रियों ने तीन युद्ध सुझाए जो भरत और बाहुबली के बीच हुए। यह थे, दृष्टि युद्ध, जल-युद्ध और मल-युद्धद्।युद्ध। भरततीनों ने तीनोंयुद्धों में बाहुबली को हराकी दियाविजय हुयी।{{sfn|Jain|2008|p=105}}
 
[[चित्र:Badami, Höhle 4, Bahubali (1999).jpg|thumb|बाहुबली के ध्यान में रहते समय को दर्शाता एक चित्र]]
इस युद्ध के बाद बाहुबली को वैराग्य हो गया और वे सर्वस्व त्याग कर दिगम्बर मुनि बन गये। उन्होंने एक वर्ष तक बिना हिले खड़े रहकर कठोर तपस्या की। इस दौरान उनके शरीर पर बेले लिपट गयी। चींटियों और आंधियो से घिरे होने पर भी उन्होंने अपना ध्यान भंग नही किया और बिना कुछ खाये पिये अपनी तपस्या जारी रखी। एक वर्ष के पश्चात भरत उनके पास आये और उन्हें नमन किया। इससे बाहुबली के मन में अपने बड़े भाई को नीचा दिखाने की ग्लानि समाप्त हो गई और उनके चार घातिया कर्मो का नाश हो गया। तब उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे इस अर्ध चक्र के प्रथम केवली बन गए। इसके पश्चात उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
 
[[आदिपुराण]] के अनुसार बाहुबली इस युग के प्रथम कामदेव थे।{{sfn|चंपत राय जैन|१९२९|p=९२}} इस ग्रंथ की रचना आचार्य जिनसेन ने ९वी शताब्दी में संस्कृत भाषा में की थी। यह ग्रंथ भगवान ऋषभदेव की दस पर्यायो तथा उनके पुत्र भरत और बाहुबली के जीवन का वर्णन करता है।
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{{Commons category|Bahubali}}
 
* [[जैन धर्म मेंrमें भगवान]]
 
==सन्दर्भ==