"आमेर दुर्ग": अवतरणों में अंतर

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==भूगोल==
आमेर राजधानी जयपुर से ११ कि.मी. (६.८३५ मील)<!--{{Convert|11|km}}--> उत्तर में स्थित एक कस्बा है जिसका विस्तार ४ वर्ग किलोमीटर (४,३०,००,००० वर्ग फुट) <!--{{Convert|4|km2}}--><ref name="Publishing2008">{{cite book|author=आउटलुक पब्लिशिंग|title=आउटलुक|url=https://books.google.com/books?id=PTEEAAAAMBAJ&pg=PA39|accessdate=१८ अप्रैल २०११|date=१ दिसम्बर २००८|publisher=आउटलुक पब्लिशिंग| language =अंग्रेज़ी en|pages=३९–}}</ref> कस्बा <!--या क्षेत्र -->है। दुर्ग यहां की एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और इसकी प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने [[मावठा सरोवर]] को देखता हुआ प्रतीत होता है।,<ref name="Abram2003">{{cite book|last=Abram|first=डेविड|title=रफ़ गाइड टू इण्डिया|url=https://books.google.com/books?id=kAMik_6LbwUC&pg=PA161|accessdate=१९ अप्रैल २०११|date=१५ दिसम्बर २००३|publisher=रफ़ गाइड्स|isbn=978-1-84353-089-3| language =अंग्रेज़ी en|page=१६१}}</ref><ref name="BruynBain2010">{{cite book|author1= पिप्पा द ब्रूयेन|author2= कीथ बैन|author3= डेविड एलार्डाइस|author4= शोनार जोशी|title= फ़्रॉमर्स इण्डिया [Frommer's India]|url=https://books.google.com/books?id=HlqM2CR4vfUC&pg=PA521|accessdate= १८ अप्रैल २०११|date=१ मार्च २०१०|publisher= फ़्रॉमर्स|isbn=978-0-470-55610-8 | language =अंग्रेज़ी en |pages=521–522}}</ref><ref name=fort>
 
{{Cite web|url=https://www.jaipur.org.uk/forts-monuments/amber.html|title=आमेर फ़ोर्ट|accessdate=२० मार्च २०१४|publisher = जयपुर.ऑर्ग | language =अंग्रेज़ी en}}</ref><ref name=Tour>{{Cite web|url=https://www.rajasthantourism.gov.in/Destinations/Jaipur/Amer.aspx |title= आमेर पैलेस [Amer Palace] |accessdate=३१ मार्च २०११|publisher= राजस्थान पर्यटन विभाग: भारत सरकार | language =अंग्रेज़ी en}}</ref><ref name="iloveindia">{{cite web|url=http://www.iloveindia.com/indian-monuments/amber-fort.html|title=आमेर फ़ोर्ट [[Amer Fort]] |publisher=iloveindia.com |accessdate= १४ फ़रवरी २०१८ | language =अंग्रेज़ी en |archivedate=}}</ref><ref>{{Cite web|url = http://amerjaipur.in/Amer-monuments-description.php?mid=4&name=Maota%20Sarover|title = माओठा सरोवर-आमेर-जयपुर [Maota Sarover -Amer-jaipur]|date = |accessdate = २५ सितम्बर २०१५|website = http://amerjaipur.in|publisher = अगम पारीख| | language =अंग्रेज़ी en}}</ref> यही सरोवर आमेर के महलों की जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत भी है। यह क्षेत्र बहुत पहले ढूंढाड़ नाम से जाना जाता था। राजस्थान के पूर्वी भाग में ढूंढ नदी बहती थी, जिस पर उससे लगे क्षेत्र का नाम ढूंढाड़ पड़ गया था। इस क्षेत्र में वर्तमान [[जयपुर जिला|जयपुर]], [[दौसा जिला|दौसा]], [[सवाई माधोपुर जिला|सवाई माधोपुर]], [[टोंक जिला|टोंक]] जिले एवं [[करौली जिला|करौली]] का उत्तरी भाग आता था।<ref>[https://www.mapsofindia.com/maps/rajasthan/rivers/jaipur.html जयपुर रिवर मैप]।मैप्स ऑफ इण्डिया।अभिगमन तिथि १८ फ़रवरी २०१८]</ref>
 
आमेर जयपुर नगर से लगभग लगा हुआ ही है और यहां का ऊष्म मरुस्थलीय जलवायु तथा ऊष्म अर्ध-शुष्क जलवायु का प्रभाव रहता है। "''BWh''/''BSh''",<ref>[//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/6/66/World_K%C3%B6ppen_Map.jpg विश्व कोप्पन मानचित्र]</ref> यहां वार्षिक वर्षा ६५० मि॰मी॰ (२६ इंच) <!--{{convert|650|mm|in}}--> होती है, किन्तु इसका अधिकांश भाग मानसून माहों, जून से सितम्बर के बीच में ही होता है। ग्रीष्मकाल में अपेक्षाकृत उच्च तापमान रहता है जिसका औसत दैनिक तापमान लगभग ३०° से॰ (८६° फ़ै॰)<!--{{convert|30|C|F}-->} होता है। मानसून काल में प्रायः भारी वर्षा आती हैं, किन्तु बाढ आदि की कोई स्थिति नहीं होती है। शीतकाल नवम्बर से फ़रवरी में अपेक्षाकृत आनन्ददायी रहते हैं। तब औसत तापमान १०-१५° से॰ (५०-५९° फ़ै॰)<!--{{convert|10|-|15|C|F}}--> तक रहता है जिसके संग सूक्ष्म या शून्य आर्द्रता रहती है। उस समय शीतलहर तापमान को जमाने की स्थिति के निकट तक ले जा सकता है। <ref>{{cite web|url=http://www.worldweather.org/066/c00531.htm|title=World Weather Information Service|accessdate=११ दिसम्बर २००९| language =अंग्रेज़ी en}}</ref>
 
[[भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग|पुरातत्त्वविज्ञान एवं संग्रहालय विभाग]] के अधीक्षक द्वारा बताये गए वार्षिक पर्यटन आंकड़ों के अनुसार यहाँ ५००० पर्यटक प्रतिदिन आते हैं। वर्ष २००७ के आंकड़ों में यहां १४ लाख दर्शकों का आगमन हुआ था।<ref name="Publishing2008" />
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[[File:Amber1860.jpg|thumb|200px|आम्बेर दुर्ग का एक दृश्य, विलियम सिम्पसन, सं.१८६०, पानी के रंग]]
 
आमेर की स्थापना मूल रूप से ९६७ ई॰ में राजस्थान के मीणाओं में चन्दा वंश के राजा एलान सिंह द्वारा की गयी थी।<ref name=DNA>{{cite news|title= द फ़ॅन्टास्टिक ५ फोर्ट्स: [Rajasthan Is Home to Some Beautiful Forts, Here Are Some Must-See Heritage Structures] | language =अंग्रेज़ी en|url=http://www.highbeam.com/doc/1P3-3191827171.html|accessdate=५ जुलाई २०१५|date= २८ जनवरी २०१४|publisher=डीएनए : डेली न्यूज़ एण्ड ऍनालिसिस |via=[[:w:High Beam|हाई बीम]]|subscription=yes}}</ref> वर्तमान आमेर दुर्ग जो दिखाई देता है वह आमेर के कछवाहा राजा मानसिंह के शासन में पुराने किले के अवशेषों पर बनाया गया है।<ref name=Tour/><ref name="Rani2007">{{cite book|last=रानी |first=कयिता|title= रॉयल राजस्थान |url=https://books.google.com/books?id=lELRo9xARHEC&pg=PA5|accessdate=१९ अप्रैल २०११|date=नवंबर २००७|publisher= न्यू हॉलैण्ड पब्लिशर्स | language =अंग्रेज़ी en|isbn=978-1-84773-091-6|page=५}}</ref> मानसिंह के बनवाये महल का अच्छा विस्तार उनके वंशज [[जय सिंह प्रथम]] द्वारा किया गया। अगले १५० वर्षों में कछवाहा राजपूत राजाओं द्वारा आमेर दुर्ग में बहुत से सुधार एवं प्रसार किये गए और अन्ततः [[जयसिंह द्वितीय|सवाई जयसिंह द्वितीय]] के शासनकाल में १७२७ में इन्होंने अपनी राजधानी नवरचित [[जयपुर]] नगर में स्थानांतरित कर ली।<ref name="Publishing2008"/><ref name="Abram2003" /><ref name=Tour/><ref name="iloveindia"/>
 
===कछवाहाओं द्वारा आमेर का अधिग्रहण ===
[[चित्र:3 step stepwell.jpg|अंगूठाकार|बाएँ|पन्ना मीणा का कुण्ड या बावली।]]
इतिहासकार [[जेम्स टॉड]] के अनुसार इस क्षेत्र को पहले '''खोगोंग''' नाम से <span dir="ltr" lang="hi">जाना</span> जाता था। तब यहाँ मीणा राजा रलुन सिंह जिसे एलान सिंह चन्दा भी कहा जाता था, का राज था। वह बहुत ही नेक एवं अच्छा राजा था। उसने एक असहाय एवं बेघर राजपूत माता और उसके पुत्र को शरण मांगने पर अपना लिया। कालान्तर में मीणा राजा ने उस बच्चे ढोला राय (दूल्हेराय) को बड़ा होने पर मीणा रजवाड़े के प्रतिनिधि स्वरूप दिल्ली भेजा। मीणा राजवंश के लोग सदा ही शस्त्रों से सज्जित रहा करते थे अतः उन पर आक्रमण करना व हराना सरल नहीं था। किन्तु वर्ष में केवल एक बार, [[दीपावली|दीवाली]] के दिन वे यहां बने एक कुण्ड में अपने शस्त्रों को उतार कर अलग रख देते थे एवं स्नान एवं पितृ-तर्पण किया करते थे। ये बात अति गुप्त रखी जाती थी, किन्तु ढोलाराय ने एक ढोल बजाने वाले को ये बात बता दी जो आगे अन्य राजपूतों में फ़ैल गयी। तब दीवाली के दिन घात लगाकर राजपूतों ने उन निहत्थे मीणाओं पर आक्रमण कर दिया एवं उस कुण्ड को मीणाओं की रक्तरंजित लाशों से भर दिया। <ref>[टॉड.द्वितीय.२८१]</ref> इस तरह खोगोंग पर आधिपत्य प्राप्त किया।<ref name="amer fort">{{cite web|url=http://amerjaipur.in/Amer-monuments-description.php?mid=3&name=Jaigarh%20fort| title = आमेर(आम्बेर)| language =अंग्रेज़ी en| accessdate=१२ मार्च २०१८}}</ref> राजस्थान के इतिहास में कछवाहा राजपूतों के इस कार्य को अति हेय दृष्टि से देखा जाता है व अत्यधिक कायरतापूर्ण व शर्मनाक माना जाता है।<ref name="कुण्ड">{{cite web|first1=बृजेश|last1=उपाध्याय|title=इस बावड़ी की परंपरा का खुल गया राज तो जान गवां बैठे मीणा|url=https://www.bhaskar.com/news/c-10-2409428-jp0925-history-of-rajasthan-NOR.html|website=bhaskar.com/|publisher=[[दैनिक भास्कर]]|accessdate=16 नवम्बर 2017}}</ref> उस समय मीणा राजा पन्ना मीणा का शासन था, अतः इसे पन्ना मीणा की बावली कहा जाने लगा। यह बावड़ी आज भी मिलती है और २०० फ़ीट गहरी है तथा इसमें १८०० सीढियां है।
 
पहला राजपूत निर्माण राजा कांकिल देव ने १०३६ में आमेर के अपनी राजधानी बन जाने पर करवाया। यह आज के जयगढ़ दुर्ग के स्थान पर था। अधिकांश वर्तमान इमारतें राजा मान सिंह प्रथम (दिसम्बर २१, १५५० – जुलाई ६, १६१४ ई॰) के शासन में १६०० ई॰ के बाद बनवायी गयीं थीं। उनमें से कुछ प्रमुख इमारतें हैं आमेर महल का दीवान-ए-खास और अत्यधिक सुन्दरता से चित्रित किया हुआ गणेश पोल द्वार जिसका निर्माण मिर्ज़ा राजा जय सिंह प्रथम ने करवाया था।<ref name=DNA/>
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वर्तमान आमेर महल को १६वीं शताब्दी के परार्ध में बनवाया गया जो वहां के शासकों के निवास के लिये पहले से ही बने प्रासाद का विस्तार स्वरूप था। यहां का पुराना प्रासाद, जिसे ''कादिमी'' महल कहा जाता है (प्राचीन का [[फारसी]] अनुवाद) भारत के प्राचीनतम विद्यमान महलों में से एक है। यह प्राचीन महल आमेर महल के पीछे की घाटी में बना हुआ है।
 
आमेर को मध्यकाल में [[ढूंढाड़]] नाम से जाना जाता था (अर्थात पश्चिमी सीमा पर एक बलि-पर्वत) और यहां ११वीं शताब्दी से – अर्थात १०३७ से १७२७ ई॰ तक कछवाहा राजपूतों का शासन रहा, जब तक की उनकी राजधानी आमेर से नवनिर्मित जयपुर शहर में स्थानांतरित नहीं हो गयी। <ref name="BruynBain2010"/> इसीलिये आमेर का इतिहास इन शासकों से अमिट रूप से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इन्होंने यहां अपना साम्राज्य स्थापित किया था।<ref name="KhangarotNathawat1990">{{cite book|author1= आर एस खंगरावत|author2= पी एस नैथावत |title=जयगढ़: द इन्विन्सिबल फ़ोर्ट ऑफ़ आमेर [Jaigarh, the invincible fort of Amer] | language =अंग्रेज़ी en|url=https://books.google.com/books?id=hkBuAAAAMAAJ|accessdate= १६ अप्रैल २०११|date= १ जनवरी १९९०|publisher=आरअबीएसए पब्लिशर्स|isbn=978-81-85176-48-2|pages=8–9, 17}}</ref>
 
मीणाओं के समय के मध्यकाल के बहुत से निर्माण या तो ध्वंस कर दिये गए या उनके स्थान पर आज कोई अन्य निर्माण किया हुआ है। हालांकि १६वीं शताब्दी का आमेर दुर्ग एवं निहित महल परिसर जिसे राजपूत महाराजाओं ने बनवाया था, भली भांति संरक्षित है।<ref name=Tour/><ref name="iloveindia"/>
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==अभिन्यास==
आमेर एवं [[जयगढ़ दुर्ग]] [[अरावली पर्वतमाला]] के एक पर्वत ''चील का टीला ''के ऊपर ही बने हुए हैं। असल में यह महल एवं जयगढ़ दुर्ग एक ही परिसर के भाग कहे जाते हैं एवं दोनों एक पहाड़ी सुरंग के मार्ग से जुड़े हुए हैं। यह सुरंग गुप्त रूप से बनी थी, जिसका प्रयोजन युद्धकाल में विपरीत परिस्थिति होने पर राजवंश के लोगों को गुप्त रूप से अधिक सुरक्षित जयगढ़ दुर्ग तक पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया था।<ref name="BruynBain2010"/><ref name="iloveindia"/><ref name="Jaivan">{{Cite web|url=http://www.jaipur.org.uk/forts-monuments/jaigarh-fort.html|title=जयपुर|accessdate=१६ अप्रैल २०११ | language =अंग्रेज़ी en|publisher=Jaipur.org.uk}}</ref><ref name="Ruggles2008">{{cite book|author= डी फ़ेयरचाइल्ड रग्ग्ल्स|title= इस्लामिक गार्डन्स एण्ड लैण्डस्केप्स [Islamic gardens and landscapes] | language =अंग्रेज़ी en|url=https://books.google.com/books?id=PgbjhGwfXBEC&pg=PA205|accessdate= १६ अप्रैल २०११|year=२००८|publisher= पेन्नसिल्वेनिया विश्वविद्यालय प्रेस | language =अंग्रेज़ी en|isbn=978-0-8122-4025-2|pages= २०५-२०६}}</ref>
 
===प्रवेश द्वार===
यह महल चार मुख्य भागों में बंटा हुआ है जिनके प्रत्येक के प्रवेशद्वार एवं प्रांगण हैं। मुख्य प्रवेश '''सूरज पोल''' द्वार से है जिससे जलेब चौक में आते हैं। जलेब चौक प्रथम मुख्य प्रांगण है तथा बहुत बड़ा बना है। इसका विस्तार लगभग १०० मी लम्बा एवं ६५ मी. चौड़ा है। प्रांगण में युद्ध में विजय पाने पर सेना का जलूस निकाला जाता था। ये जलूस राजसी परिवार की महिलायें जालीदार झरोखों से देखती थीं।<ref name="BrownThomas2008">{{cite book|author1=लिण्डसे ब्राउन |author2=अमेलिया थॉमस|title=राजस्थान, दिल्ली एण्ड आगरा [Rajasthan, Delhi & Agra]|url=https://books.google.com/books?id=Zz0_zXPb68kC&pg=PA178|accessdate= १८ अप्रैल २०११|date= १ अक्तूबर २००८ | language = अंग्रेज़ीen |publisher=लोनली प्लानेट |isbn=978-1-74104-690-8|pages=१७८–}}</ref> इस द्वार पर सन्तरी तैनात रहा करते थे क्योंकि ये द्वार दुर्ग प्रवेश का मुख्य द्वार था। यह द्वार पूर्वाभिमुख था एवं इससे उगते सूर्य की किरणें दुर्ग में प्रवेश पाती थीं, अतः इसे सूरज पोल कहा जाता था। सेना के घुड़सवार आदि एवं शाही गणमान्य व्यक्ति महल में इसी द्वार से प्रवेश पाते थे।<ref name=Sun>{{Cite web|url=https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Amber_Fort_-_Suraj_Pol_-_Information_Plate.JPG |title= सूरजपोल पर सूचनापट्ट |language = द्विभाषी |accessdate= १७ अप्रैल २०११ |publisher= पुरातत्त्व विभाग, राजस्थान सरकार }}</ref>
 
जलेब चौक [[अरबी भाषा]] का एक शब्द है जिसका अर्थ है सैनिकों के एकत्रित होने का स्थान। यह आमेर महल के चार प्रमुख प्रांगणों में से एक है जिसका निर्माण सवाई जय सिंह के शासनकाल (१६९३-१७४३ ई॰) के बीच किया गया था। यहां सेना नायकों जिन्हें फ़ौज बख्शी कहते थे, उनकी कमान में महाराजा के निजी अंगरक्षकों की परेड भी आयोजित हुआ करती थीं। महाराजा उन रक्षकों की टुकड़ियों की सलामी लेते व निरीक्षण किया करते थे। इस प्रांगण के बगल में ही अस्तबल बना है, जिसके ऊपरी तल पर अंगरक्षकों के निवास स्थान थे।<ref name=Jaleb>{{Cite web|url=https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Amber_Fort_-_Jaleb_Chowk_-_Information_plate.jpg |title= जलेब चौक पर सूचनापट्ट |accessdate= १७ अप्रैल २०११ |publisher= पुरातत्त्व विभाग, राजस्थान सरकार }}</ref>
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{{मुख्य|शिला देवी मन्दिर}}
[[File:Silver door in Amber Fort, Rajasthan.jpg|left|thumb|[[चाँदी|चांदी]] के दोहरे पत्र से मढ़ा हुआ शिला देवी मन्दिर का प्रवेश द्वार]]
जलेबी चौक के दायीं ओर एक छोटा किन्तु भव्य मन्दिर है जो कछवाहा राजपूतों की कुलदेवी [[शिला देवी|शिला माता]] को समर्पित है। शिला देवी [[काली माता]] या [[दुर्गा]] मां का ही एक अवतार हैं। मन्दिर के मुख्य प्रवेशद्वार में चांदी के पत्र से मढ़े हुए दरवाजों की जोड़ी है। इन पर उभरी हुई नवदुर्गा देवियों व दस महाविद्याओं के चित्र बने हुए हैं। मन्दिर के भीतर दोनों ओर चांदी के बने दो बड़े सिंह के बीच मुख्य देवी की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति से संबंधित कथा अनुसार महाराजा मान सिंह ने मुगल बादशाह द्वारा बंगाल के गवर्नर नियुक्त किये जाने पर [[येशोर|जेस्सोर]] के राजा को पराजित करने हेतु पूजा की थी। तब देवी ने विजय का आशीर्वाद दिया एवं स्वप्न में राजा को समुद्र के तट से शिला रूप में उनकी मूर्ति निकाल कर स्थापित करने का आदेश दिया था।<ref name="Abram2003"/><ref name="Prasad1966">{{cite book|author= राजीव नयन प्रसाद |title= आमेर के राजा मान सिंह [Raja Mān Singh of Amer]|url=https://books.google.com/books?id=FsA5AQAAIAAJ|accessdate= १८ अप्रैल २०११|year=१९६६|publisher=वर्ल्ड प्रेस | language = अंग्रेज़ीen }}</ref><ref name="Babb2004">{{cite book|author= लॉरेन्स ए बॅब|title=Alchemies of violence: myths of identity and the life of trade in western India|url=https://books.google.com/books?id=74tUY0le33UC&pg=PA230| language = अंग्रेज़ीen |accessdate=१९ अप्रैल २०११|date=१ जुलाई २००४|publisher=SAGE|isbn=978-0-7619-3223-9|pages= २३०-२३१}}</ref> राजा ने १६०४ में विजय मिलने पर उस शिला को सागर से निकलवाकर आमेर में देवी की मूर्ति उभरवायी तथा यहां स्थापना करवायी थी। यह मूर्ति शिला रूप में मिलने के कारण इसका नाम शिला माता पढ़ गया। मन्दिर के प्रवेशद्वार के ऊपर गणेश की मूंगे की एकाश्म मूर्ति भी स्थापित है।<ref name="BrownThomas2008"/>
 
एक अन्य किम्वदन्ती के अनुसार राजा मान सिंह को जेस्सोर के राजा ने पराजित होने के उपरांत यह श्याम शिला भेंट की जिसका महाभारत से सम्बन्ध है। महाभारत में कृष्ण के मामा मथुरा के राजा कंस ने कृष्ण के पहले ७ भाई बहनों को इसी शिला पर मारा था। इस शिला के बदले राजा मान सिंह ने जेस्सोर का क्षेत्र पराजित बंगाल नरेश को वापस लौटा दिया। तब इस शिला पर दुर्गा के महिषासुरमर्दिनी रूप को उकेर कर आमेर के इस मन्दिर में स्थापित किया था। तब से शिला देवी का पूजन आमेर के कछवाहा राजपूतों में प्राचीन देवी के रूप में किया जाने लगा, हालांकि उनके परिवार में पहले से कुलदेवी रूप में पूजी जा रही [[जामवा रामगढ़|रामगढ़]] की जामवा माता ही कुलदेवी बनी रहीं।<ref name="Babb2004"/>
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===तृतीय प्रांगण ===
{{double image|left| Amber Fort interior.jpg|175|Amber Fort - Sheesh Mahal Interior.jpg |175|बायें: शीष महल में शीशों से सज्जित छत। बायें: शीष महल का आंतरिक कक्ष}}
तीसरे प्रांगण में महाराजा, उनके परिवार के सदस्यों एवं परिचरों के निजी कक्ष बने हुए हैं। इस प्रांगण का प्रवेश '''गणेश पोल''' द्वार से मिलता है। गणेश पोल पर उत्कृष्ट स्तर की चित्रकारी एवं शिल्पकारी है। इस प्रांगण में दो इमारतें एक दूसरे के आमने-सामने बनी हैं। इनके बीच में [[मुगल उद्यान]] शैली के बाग बने हुए हैं। प्रवेशद्वार के बायीं ओर की इमारत को '''जय मन्दिर''' कहते हैं। यह महल दर्पण जड़े फलकों से बना हुआ है एवं इसकी छत पर भी बहुरंगी शीशों का उत्कृष्ट प्रयोग कर अतिसुन्दर मीनाकारी व चित्रकारी की गयी है। ये दर्पण व शीशे के टुकड़े अवतल हैं और रंगीन चमकीले धातु पत्रों से पटे हुए हैं। इस कारण से ये मोमबत्ती के प्रकाश में तेज चमकते एवं झिलमिलाते हुए दिखाई देते हैं। उस समय यहाँ मोमबत्तियों का ही प्रयोग किया जाता था। इस कारण से ही इसे '''शीश-महल''' की संज्ञा दी गयी है। यहां की दर्पण एवं रंगीन शीशों की [[पच्चीकारी]], [[मीनाकारी]] एवं रूपांकन को देखते हुए कहा गया है कि जैसे "झिलमिलाते मोमबत्ती के प्रकाश में जगमगाता आभूषण सन्दूक "।<ref name="BruynBain2010"/> शीश महल का निर्माण मान सिंह ने १६वीं शताब्दी में करवाया था और ये १७२७ ई॰ में पूर्ण हुआ। यह जयपुर राज्य का स्थापना वर्ष भी था।<ref>{{Cite web|url = http://amerjaipur.in/Amer-monuments-description.php?mid=9&name=Sheesh%20mahal%20Amer%20palace|title = शीश महल, आमेर महल [Sheesh mahal Amer palace] | language = अंग्रेज़ीen |date = |accessdate = १ जनवरी २०१६|website = www.amerjaipur.in|publisher = आमेर जयपुर . इन|last = पारीख |first = अमित कुमार पारीख एवं अगम कुमार}}</ref> हालांकि यहां का अधिकांश काम १९७०-८० के दशक में नष्ट-भ्रष्ट होता गया, किन्तु उसके बाद से इसका पुनरोद्धार एवं नवीनीकरण कार्य आरम्भ हुआ। कक्ष की दीवारें संगमर्मर की बनी हैं और इन पर उत्कृष्ट नक्काशी की गयी है। इस कक्ष से मावठा झील का रोचक एवं विहंगम दृश्य प्रस्तुत होता है।<ref name="BrownThomas2008"/>
 
इस प्रांगण में बनी दूसरी इमारत जय मन्दिर के सामने है और इसे सुख निवास या '''सुख महल''' नाम से जाना जाता है। इस कक्ष का प्रवेशद्वार [[चंदन]] की लकड़ी से बना है और इसमें जालीदार संगमर्मर का कार्य है। नलिकाओं (''पाइपों'') द्वारा लाया गया जल यहां एक खुली नाली द्वारा बहता रहता था, जिसके कारण भवन का वातावरण शीतल बना रहता था ठीक वातानुकूलित-वायु वाले आधुनिक भवनों की ही तरह। इन नालियों के बाद यह जल उद्यान की क्यारियों में जाता है। इस महल का एक विशेष आकर्षण है '''डोली महल''', जिसका आकार एक डोली की भांति है, जिनमें तब राजपूत महिलाएँ कहीं भी आना जाना किया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पहले एक भूल-भूलैया भी बनी है, जहाँ महाराजा अपनी रानियों और पटरानियों के संग हंसी-ठिठोली करते व आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे। राजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं और जब वे युद्ध से लौटकर आते थे तो सभी रानियों में सबसे पहले उनसे मिलने की होड़ लगा करती थी। ऐसे में राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में घुस जाया करते थे व इधर-उधर घूमते थे और जो रानी उन्हें सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी उसे ही प्रथम मिलन का सुख प्राप्त होता था।<ref name="अभिव्यक्ति" />
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==संरक्षण==
राजस्थान के छः दुर्ग, आमेर, [[चित्तौड़गढ़ दुर्ग|चित्तौड़ दुर्ग]], [[गागरौन दुर्ग]], [[जैसलमेर दुर्ग]], [[कुम्भलगढ़ दुर्ग]] एवं [[रणथम्भोर दुर्ग]] को यूनेस्को विश्वदाय समिति ने फ्नोम पेन में जून २०१३ में आयोजित ३७वें सत्र की बैठक में [[यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल]] सूची में सम्मिलित किया था। इन्हें सांस्कृतिक विरासत की श्रेणी आंका गया एवं राजपूत पर्वतीय वास्तुकला में श्रेणीगत किया गया। <ref>{{cite news|title=दुर्गों की विरासत स्थिति [Heritage Status for Forts]|url=http://www.highbeam.com/doc/1P3-3028072831.html|accessdate=५ जुलाई २०१५|date= २८ जून २०१३|publisher= ईस्टर्न आई|via=हाई बीम | language = अंग्रेज़ीen|subscription=yes}}</ref><ref>{{cite news|title=संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिष्ठित विरासत दुर्ग स्थल [Iconic Hill Forts on UN Heritage List]|url=http://www.highbeam.com/doc/1G1-334781049.html|accessdate= ५ जुलाई २०१५|date= २२ जून २०१३|publisher=मेल टुडे|location= नई दिल्ली, भारत |via=हाइ बीम|subscription=yes| language = अंग्रेज़ीen}}</ref>
 
आमेर का कस्बा इस दुर्ग एवं महल का अभिन्न एवं अपरिहार्य अंग है तथा इसका प्रवेशद्वार भी है। यह कस्बा अब एक धरोहर स्थल बन गया है तथा इसकी अर्थ-व्यवस्था अधिकांश रूप से यहाँ आने वाले बड़ी संख्या के पर्यटकों (लगभग ४००० से ५००० प्रतिदिन, सर्वोच्च पर्यटक काल में) पर निर्भर रहती है। यह कस्बा ४ वर्ग कि॰मी॰ (४,३०,००,००० वर्ग फ़ीट) के क्षेत्रफ़ल में फ़ैला हुआ है और यहाँ १८ मन्दिर, ३ जैन मन्दिर एवं २ मस्जिदें हैं। इसको विश्व स्मारक निधि (वर्ल्ड मॉन्युमेण्ट फ़ण्ड) द्वारा विश्व के १०० लुप्तप्राय स्थलों में गिना गया है। इसके संरक्षण हेतु व्यय रॉबर्ट विलियम चैलेन्ज ग्रांट द्वारा वहन किया जाता है।<ref name="Publishing2008"/> वर्ष २००५ के आंकड़ों के अनुसार दुर्ग में ८७ हाथी रहते थे, जिनमें से कई हाथी पैसों की कमी के कारण कुपोषण के शिकार थे।<ref name="Ghosh2005">{{cite book|last=घोष|first=र्हिया|title= कड़ियों में ईश्वर [Gods in chains]|url=https://books.google.com/books?id=3Av0YQXO1mgC&pg=PT24|accessdate= १९ अप्रैल २०११|year=२००५|publisher= फ़ाउण्डेशन बुक्स|isbn=978-81-7596-285-9|page=24| language = अंग्रेज़ीen}}</ref>
 
आमेर विकास एवं प्रबन्धन प्राधिकरण (''आमेर डवलपमेण्ट एण्ड मैनेजमेण्ट अथॉरिटी'' (एडीएमए)) द्वारा आमेर महल एवं परिसर में ४० करोड़ रुपये ( ८.८८ मिलियन [[अमेरिकी डॉलर|अमरीकी डॉलर]]) का व्यव संरक्षण एवं विकास कार्यों में किया गया है। हालांकि इन संरक्षण एवं पुनरोद्धार कार्यों को प्राचीन संरचनाओं की ऐतिहासिकता और स्थापत्य सुविधाओं को बनाए रखने के लिए उनकी उपयोगिता के संबंध में गहन वाद-विवादों, चर्चाओं एवं विरोधों का सामना करना पड़ा है। एक अन्य मुद्दा इस स्मारक के व्यावसायीकरण संबंधी भी उठा है।<ref>{{Cite news|url=https://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/Amber-Palace-rennovation-Tampering-with-history/articleshow/3928204.cms|title= आमेर महल पुनरोद्धार: इतिहास से छेड़छाड़? [Amer Palace renovation: Tampering with history?]| language = अंग्रेज़ीen|accessdate= १९ अप्रैल २०११|publisher=[[टाइम्स ऑफ़ इण्डिया]]|date= ३ जून २००९}}</ref>
 
एक फ़िल्म शूटिंग करते हुए एक बड़ी फिल्म निर्माण कंपनी से एक ५०० वर्ष पुराना झरोखा गिर गया तथा चाँद महल की पुरानी चूनेपत्थर की छत को भी क्षति पहुंची है। कंपनी ने अपने सेट्स खड़े करने हेतु यहाँ छेद ड्रिल किये तथा जलेब चौक पर खूब रेत भी फ़ैलायी और इस तरह राजस्थान स्मारक एवं पुरातात्त्विक स्थल एवं एन्टीक अधिनियम (१९६१) की उपेक्षा एवं उल्लंघन किया था।<ref name= High>{{Cite news|url=http://timesofindia.indiatimes.com/Cities/Film-crew-drilled-holes-into-historic-Amer/rssarticleshow/4134002.cms|title= फ़िल्म दल ने आमेर में ड्रिल किये [ Film crew drilled holes in Amer]|accessdate= १९ अप्रैल २०११|publisher=[[टाइम्स ऑफ़ इण्डिया]]| language = अंग्रेज़ीen|date=१६ फ़रवरी २००९}}</ref>
 
[[राजस्थान उच्च न्यायालय]] की जयपुर बेंच ने हस्तक्षेप कर शूटिंग को बंद करवाया। इस बारे में उनका निरीक्षण उपरांत कथन था: "दुर्भाग्यवश न केवल जनता बल्कि विशेषकर संबंधित अधिकारीगण भी पैसे की चमक से अंधे, बहरे और गूंगे बन गए हैं, और ऐसे ऐतिहासिक संरक्षित स्मारक आय का एक स्रोत मात्र बन कर रह गए हैं।"<ref name= High/>
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== विश्व धरोहर घोषणा ==
राजस्थान सरकार ने जनवरी २०११ को राजस्थान के कुछ किलों को विश्व धरोहर में शामिल करने के लिए प्रस्ताव भेजा था। उसके बाद यूनेस्को टीम की आकलन समिति के दो प्रतिनिधि जयपुर आए और एएसआई व राज्य सरकार के अघिकारियों के साथ बैठक की। इन सबके पश्चात मई २०१३ में इसे विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया एवं इसकी औपचारिक घोषणा २१ जून २०१३ को की गई।<ref>[https://hi.pinkcity.com/2013/06/22/6-fortification-world-heritage-of-rajasthan/ राजस्थान के 6 दुर्ग विश्व विरासत] - पिंक सिटी समाचार पत्र | अभिगमन तिथि: १२ मार्च २०१८</ref><ref>[http://www.jagran.com/news/national-six-rajasthan-hill-forts-on-world-heritage-list-10376266.html राजस्थान के छह किले एक साथ विश्व धरोहर की सूची में] - [[दैनिक जागरण|जागरण]] समाचार | अभिगमन तिथि: १२ मार्च २०१८</ref><ref>{{cite news|last1=सिंह|first1=महिम प्रताप|title=यूनेस्को ने राजस्थान के ६ दुर्गों को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया [Unesco declares 6 Rajasthan forts World Heritage Sites]|url=http://www.thehindu.com/news/national/other-states/unesco-declares-6-rajasthan-forts-world-heritage-sites/article4838107.ece|accessdate=१ अप्रैल २०१५|publisher=[[द हिन्दू]] | language =अंग्रेज़ी en |date=२२ जून २०१३}}</ref>
वर्ष २०११-१३ की अवधि में स्मारक एवं दुर्गों तथा किलों पर कार्यरत अंतरराष्ट्रीय परिषद (''इन्टरनेश्नल काउन्सिल ऑन मॉन्युमेण्ट्स एण्ड फ़ोर्ट्स'', ICOMOS) ने कई अभियानों के अन्तर्गत इन दुर्गों का निरीक्षण किया एवं इनके नामांकन से सम्बन्धित कई अधिकारियों और विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श किये। अंतरराष्ट्रीय परिषद की रिपोर्ट में इन दुर्गों की इस श्रृंखला का सार्वभौमिक महत्व अतुलनीय बताया गया है। राजस्थान राज्य के इन ६ विशालकाय और वैभवशाली पहाड़ी किलों के रूप में ८वीं से १८वीं शताब्दी की राजपूत रियासतों (राजपूताना शैली के वास्तुशिल्प) की झलक मिलती है - ऐसा इस रिपोर्ट में बताया गया है। वर्ष २०१० में जंतर-मंतर को भी विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया था।<ref>
{{cite web |url=http://www.khaskhabar.com/hindi-news/National-rajasthan-news-select-6-forts-of-rajasthan-in-the-world-heritage-2256093.html
पंक्ति 199:
|publisher= जे के रोमिंग
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| language = अंग्रेज़ीen
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|title= Good action and bad stereotypes on the Northwest Frontier
पंक्ति 207:
|publisher= विली लोगान
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| language = अंग्रेज़ीen
|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref>, [[w:The Second Best Exotic Marigold Hotel|''द बेस्ट एग्ज़ॉटिक मॅरिगोल्ड होटल'']], आदि फिल्मों की शूटिंग भी यहां की गई है।
 
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|last= |first= |date= |website= pinkcity.com
|publisher= पिंकसिटी.कॉम
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|title= जयपुर का आमेर किला: पूरी मार्गदर्शिका [Jaipur's Amber Fort: The Complete Guide]
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|publisher=ट्रिप्सैवी
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===सड़क मार्ग===