"गयासुद्दीन तुग़लक़": अवतरणों में अंतर

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'''गयासुद्दीन तुग़लक़''' [[दिल्ली सल्तनत]] में [[तुग़लक़ वंश]] का शासक था। ग़ाज़ी मलिक या तुग़लक़ ग़ाज़ी, ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (1320-1325 ई॰) के नाम से 8 सितम्बर 1320 को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसे तुग़लक़ वंश का संस्थापक भी माना जाता है। इसने कुल 29 बार [[मंगोल]] आक्रमण को विफल किया। सुल्तान बनने से पहले वह [[क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी]] के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर नियुक्त हुआ था।<ref name=":0">{{cite book|first1=सैलेन्द्र|last1=सेन|title=A Textbook Of Medieval Indian History|trans_title=मध्यकालीन भारतीय इतिहास की पाठ्यपुस्तक|date=2013|publisher=प्राइमस बुक्स|isbn=9380607342, 9789380607344|page=89 से 92| language =अंग्रेज़ी en}}</ref> वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने अपने नाम के साथ 'ग़ाज़ी' शब्द जोड़ा था। गयासुद्दीन का पिता करौना तुर्क ग़ुलाम था व उसकी माता हिन्दू थी।<ref>{{cite book|first1=जमाल|last1=मलिक|title=Islam In South Asia|trans_title=दक्षिण एशिया में इस्लाम|date=2008|publisher=ब्रिल|location=नीदरलैण्ड|isbn=9789004168596| language =अंग्रेज़ी en}}</ref>
 
== आर्थिक सुधार ==
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1321 ई. में ग़यासुद्दीन ने वारंगल पर आक्रमण किया, किन्तु वहाँ के काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव को पराजित करने में वह असफल रहा। 1323 ई. में द्वितीय अभियान के अन्तर्गत ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने शाहज़ादे 'जौना ख़ाँ' ([[मुहम्मद बिन तुग़लक़]]) को दक्षिण भारत में सल्तनत के प्रभुत्व की पुन:स्थापना के लिए भेजा। जौना ख़ाँ ने वारंगल के काकतीय एवं [[मदुरा]] के पाण्ड्य राज्यों को विजित कर दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।
 
इस प्रकार सर्वप्रथम ग़यासुद्दीन के समय में ही दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया। इन राज्यों में सर्वप्रथम वारंगल था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ पूर्णतः साम्राज्यवादी था। इसने अलाउद्दीन ख़िलजी की दक्षिण नीति त्यागकर दक्षिणी राज्यों को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।<ref name=":1">{{cite book|first1=रिचर्ड एम.|last1=ईटन|title=A Social History of the Deccan 1300-1761|trans_title=दक्कन का सामाजिक इतिहास 1300-1761|publisher=कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस|page=21| language =अंग्रेज़ी en}}</ref>
 
ग़यासुद्दीन जब बंगाल में था, तभी सूचना मिली कि, ज़ौना ख़ाँ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) [[निज़ामुद्दीन औलिया]] का शिष्य बन गया है और वह उसे राजा होने की भविष्यवाणी कर रहा है। निज़ामुद्दीन औलिया को ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने धमकी दी तो, औलिया ने उत्तर दिया कि, "हुनूज दिल्ली दूर अस्त, अर्थात दिल्ली अभी बहुत दूर है।<ref>{{cite web|first1=डेलीहंट|last1=ऐप|title=इस महान सूफी संत का ये वाक्य "हुनूज दिल्ली दूरअस्त" आज भी लोगों के जेहन में है|url=https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/samacharnama-epaper-samacnam/is+mahan+suphi+sant+ka+ye+vaky+hunuj+dilli+duraast+aaj+bhi+logo+ke+jehan+me+hai-newsid-65940672|website=Dailyhunt|accessdate=03 April 2018}}</ref> हिन्दू जनता के प्रति ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की नीति कठोर थी। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ संगीत का घोर विरोधी था। बरनी के अनुसार अलाउद्दीन ख़िलजी ने शासन स्थापित करने के लिये जहाँ रक्तपात व अत्याचार की नीति अपनाई, वहीं ग़यासुद्दीन ने चार वर्षों में ही उसे बिना किसी कठोरता के संभव बनाया।