"नाट्य शास्त्र": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
|||
पंक्ति 2:
नाटकों के संबंध में शास्त्रीय जानकारी को '''नाट्य शास्त्र''' कहते हैं। इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रंथ भी '''नाट्यशास्त्र''' के नाम से जाना जाता है जिसके रचयिता [[भरत मुनि]] थे। भरत मुनि का जीवनकाल ४०० ईसापूर्व से १०० ई के मध्य किसी समय माना जाता है।
[[संगीत]], [[नाटक]] और [[अभिनय]] के संपूर्ण ग्रंथ के रूप में भारतमुनि के नाट्य शास्त्र का आज भी बहुत सम्मान है। उनका मानना है कि नाट्य शास्त्र में केवल नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता बल्कि अभिनेता रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है। 37 अध्यायों में भरतमुनि ने रंगमंच अभिनेता अभिनय नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से संबंधित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। भरत के नाट्य शास्त्र के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नाटक की सफलता केवल लेखक की प्रतिभा पर आधारित नहीं होती बल्कि विभिन्न कलाओं और कलाकारों के सम्यक के सहयोग से ही होती है।<ref>{{cite book |last=मालवीय|first= डाँ. सुधाकर|title= हिन्दी दशरूपक|year= 1995 |publisher= कृष्णदास अकादमी|location= वाराणसी, भारत|id= |page= 7|
== परिचय ==
|