"बिच्छू": अवतरणों में अंतर

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'''बिच्छू''' [[सन्धिपाद]] (Arthropoda) संघ का साँस लेनेवाला [[अष्टपाद]] (Arachnid) है। इसकी अनेक जातियाँ हैं, जिनमें आपसी अंतर बहुत मामूली हैं। यहाँ बूथस (Buthus) वंश का विवरण दिया जा रहा है, जो लगभग सभी जातियों पर घटता है।
 
यह साधारणतः उष्ण प्रदेशों में पत्थर आदि के नीचे छिपे पाये जाते हैं और रात्रि में बाहर निकलते हैं। बिच्छू की लगभग २००० जातियाँ होती हैं जो [[न्यूजीलैंड]] तथा [[अंटार्कटिक]] को छोड़कर विश्व के सभी भागों में पाई जाती हैं। इसका शरीर लंबा चपटा और दो भागों- शिरोवक्ष और उदर में बटा होता है। शिरोवक्ष में चार जोड़े पैर और अन्य उपांग जुड़े रहते हैं। सबसे नीचे के खंड से डंक जुड़ा रहता है जो विष-ग्रंथि से संबद्ध रहता है। शरीर काइटिन के बाह्यकंकाल से ढका रहता है। इसके सिर के ऊपर दो आँखें होती हैं। इसके दो से पाँच जोड़ी आँखे सिर के सामने के किनारों में पायी जाती हैं।<ref>http://insects.tamu.edu/extension/bulletins/l-1678.html</ref><br /> बिच्छू साधारणतः उन क्षेत्रों में रहना पसन्द करते हैं जहां का तापमान २०<sup>०</sup> से ३७<sup>०</sup> सेंटीग्रेड के बीच रहता हैं। परन्तु ये जमा देने वाले शीत तथा मरूभूमि की गरमी को भी सहन कर सकते हैं।<ref>{{cite journal |last=Hadley |first=Neil F. |year=1970 |title=Water Relations of the Desert Scorpion, ''Hadrurus Arizonensis'' |journal=The Journal of Experimental Biology |volume=53 |pages=547–558 |url=http://jeb.biologists.org/cgi/reprint/53/3/547.pdf |accessdate=2008-06-13}}</ref><ref>{{cite journal |last=Hoshino |first=K. |coauthorsauthor2=A. T. V. Moura & H. M. G. De Paula |year=2006 |title=Selection of Environmental Temperature by the Yellow Scorpion ''Tityus serrulatus'' Lutz & Mello, 1922 (Scorpiones, Buthidae) |journal=Journal of Venomous Animals and Toxins including Tropical Diseases |volume=12 |issue=1 |pages=59–66 |url=http://www.scielo.br/pdf/jvatitd/v12n1/28301.pdf |accessdate=2008-06-13 |doi=10.1590/S1678-91992006000100005}}</ref>
 
अधिकांश बिच्छू इंसान के लिए हानिकारक नहीं हैं। वैसे, बिच्छू का डंक बेहद पीड़ादायक होता है और इसके लिए इलाज की जरूरत पड़ती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक बिच्छू के जहर में पाए जाने वाले रसायन [[क्लोरोटोक्सिन]] को अगर [[ट्यूमर]] वाली जगह पर लगाया जाए तो इससे स्वस्थ और [[कैंसर|कैंसरग्रस्त]] [[कोशिका|कोशिकाओं]] की पहचान आसानी से की जा सकती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि क्लोरोटोक्सिन कैंसरग्रस्त कोशिकाओं पर सकारात्मक असर डालता है। यह कई तरह के [[कैंसर]] के इलाज में कारगर साबित हो सकता है। उनका मानना है कि बिच्छू का जहर कैंसर का ऑपरेशन करने वाले सर्जनों के लिए मददगार साबित हो सकता है। उन्हें कैंसरग्रस्त और स्वस्थ कोशिकाओं की पहचान करने में आसानी होगी।<ref>{{cite web |url= http://samachar.boloji.com/200707/06236.htm|title=बिच्छू का जहर कैंसर के इलाज में काम आ सकता है|access-date=[[१ जनवरी]] [[२००८]]|format= एचटीएम|publisher= हिन्दी नेस्ट|language=}}</ref>