"टिहरी गढ़वाल जिला": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
टिहरी और गढ़वाल दो अलग नामों को मिलाकर इस जिले का नाम रखा गया है। जहाँ टिहरी बना है शब्‍द ‘त्रिहरी’ से, जिसका मतलब है एक ऐसा स्‍थान जो तीन तरह के पाप (जो जन्‍मते है मनसा, वचना, कर्मा से) धो देता है वहीं दूसरा शब्‍द बना है ‘गढ़’ से, जिसका मतलब होता है किला। सन्‌ 888 से पूर्व सारा गढ़वाल क्षेत्र छोटे-छोटे ‘गढ़ों’ में विभाजित था, जिनमें अलग-अलग राजा राज्‍य करते थे जिन्‍हें ‘राणा’, ‘राय’ या ‘ठाकुर’ के नाम से जाना जाता था। इसका पुराना नाम गणेश प्रयाग माना जाता है।<ref>{{उद्धृत अंतर्जाल|url=httphttps://uttaranchaltodaywww.news4blog.com/hn2018/2015/01/1311/history-of-tehri-garhwal/.html|title=टिहरी का वर्तमान और इतिहास|date=१३ जनवरी २०१५}}</ref><ref>{{उद्धृत अंतर्जाल|url=http://panchjanya.com/arch/2005/11/27/File11.htm|title=ज्योतिषियों ने टिहरी शहर की स्थापना के समय ही भविष्यवाणी कर दी थी कि शहर जलमग्न होगा - एक शहर जो बना इतिहास|author=राम प्रताप मिश्र|accessdate=26-08-2013|accessurl=https://web.archive.org/web/20130826123311/http://panchjanya.com/arch/2005/11/27/File11.htm}}</ref>
 
ऐसा कहा जाता है कि मालवा के राजकुमार कनकपाल एक बार बद्रीनाथ जी (जो आजकल चमोली जिले में है) के दर्शन को गये जहाँ वे पराक्रमी राजा भानु प्रताप से मिले। राजा भानु प्रताप उनसे काफी प्रभावित हुए और अपनी इकलौती बेटी का विवाह कनकपाल से करवा दिया साथ ही अपना राज्‍य भी उन्‍हें दे दिया। धीरे-धीरे कनकपाल और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक-एक कर सारे गढ़ जीत कर अपना राज्‍य बढ़ाती गयीं। इस तरह से सन्‌ 1803 तक सारा (918 सालों में) गढ़वाल क्षेत्र इनके कब्‍जे में आ गया।