"दयानन्द सरस्वती": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
संजीव कुमार (वार्ता | योगदान) छो 2405:204:C288:E6A8:0:0:6B:68AC (Talk) के संपादनों को हटाकर SM7Bot के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
||
पंक्ति 18:
[[चित्र:Swami Dayanand.jpg|thumb|right|250px|स्वामी दयानन्द सरस्वती]]
'''महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती''' ([[
उन्होंने ने [[1874]] में एक [[आर्य]] सुधारक संगठन - [[आर्य समाज]] की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्होंने [[वेदों]] की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। स्वामीजी ने [[कर्म|कर्म सिद्धान्त]], [[पुनर्जन्म]], [[ब्रह्मचर्य]] तथा [[सन्यास]] को अपने [[दर्शन]] के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले १८७६ में '[[स्वराज|स्वराज्य]]' का [[नारा]] दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया।
पंक्ति 28:
|title= दयानंद सरस्वती|access-date=[[20 सितंबर]] [[2007]]|format= एचटीएम|publisher=रिफ़रेंसइंडियानेटज़ोन.कॉम|language=अंग्रेज़ी}}</ref> उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और माँ का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे [[संस्कृत]], [[वेद]], [[शास्त्र|शास्त्रों]] व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए।<ref>{{cite book |title=Swami Dayanand Saraswati|last=Sinhal |first=Meenu |authorlink= |coauthors= |year=2009 |publisher=प्रभात प्रकाशन|isbn=8184300174 |page=3 |url=http://books.google.com/books?id=iDPGFxCzc54C&printsec=frontcover&dq=Dayananda+Sarasvati+%28Swami%29+-inauthor:%22Dayananda+Sarasvati+%28Swami%29%22&lr=&cd=11#v=onepage&q=&f=false |ref= }}</ref><ref>{{cite book |title=World Perspectives on Swami Dayananda Saraswati |last=Garg |first=Ganga Ram|authorlink= |coauthors= |year=1986 |publisher=Concept Publishing Company |isbn= |page=4 |url=http://books.google.com/books?id=Siv6V1VDX-AC&pg=PR44&dq=Dayananda+Sarasvati+%28Swami%29+-inauthor:%22Dayananda+Sarasvati+%28Swami%29%22&lr=&cd=21#v=onepage&q=Dayananda%20Sarasvati%20%28Swami%29%20-inauthor%3A%22Dayananda%20Sarasvati%20%28Swami%29%22&f=false |ref= |chapter=1. Life and Teachings}}</ref>
उनके जीवन में ऐसी बहुत सी घटनाएं हुईं, जिन्होंने उन्हें [[हिन्दू]] धर्म की पारम्परिक मान्यताओं और ईश्वर के बारे में गंभीर प्रश्न पूछने के लिए विवश कर दिया। एक बार [[शिवरात्रि]] की घटना है। तब वे बालक ही थे। [[शिवरात्रि]] के उस दिन उनका पूरा परिवार रात्रि जागरण के लिए एक [[मन्दिर]] में ही रुका हुआ था। सारे परिवार के सो जाने के पश्चात् भी वे जागते रहे कि [[भगवान शिव]] आयेंगे और प्रसाद ग्रहण करेंगे। उन्होंने देखा कि
अपनी छोटी बहन और चाचा की [[हैजा|हैजे]] के कारण हुई मृत्यु से वे जीवन-मरण के अर्थ पर गहराई से सोचने लगे और ऐसे प्रश्न करने लगे जिससे उनके माता पिता चिन्तित रहने लगे। तब उनके माता-पिता ने उनका [[विवाह]] किशोरावस्था के प्रारम्भ में ही करने का निर्णय किया (१९वीं सदी के आर्यावर्त (भारत) में यह आम प्रथा थी)। लेकिन बालक मूलशंकर ने निश्चय किया कि विवाह उनके लिए नहीं बना है और वे १८४६ में सत्य की खोज में निकल पड़े।
|