"त्रिदोष": अवतरणों में अंतर

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: ''रोगस्तु दोषवैषम्यं दोषसाम्यमरोगता
: (दोषों की विषमता ही रोग है और दोषों का साम्य ही आरोग्य है।)
 
तीनों दोषों में सर्वप्रथम वात दोष ही विरूद्ध आहार-विहार से प्रकुपित होता है और अन्य दोष एवं धातु को दूषित कर रोग उत्पन्न करता है। वात दोष प्राकृत रूप से प्राणियों का प्राण माना गया है। आयुर्वेद शास्त्र में शरीर रचना, क्रिया एवं विकृतियों का वर्णन एवं भेद और चिकित्सा व्यवस्था दोषों के अनुसार ही किया जाता है।