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'''जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर''' ({{भाषा-उर्दू|جلال الدین محمد اکبر}}) ([[१५ अक्तूबर]], [[१५४२]]-[[२७ अक्तूबर]], [[१६०५]])<ref name="अकबर महान"/> [[तैमूर लंग|तैमूरी वंशावली]] के [[मुगल]] वंश का तीसरा शासक था।<ref>{{cite web|url=http://www.newworldencyclopedia.org/entry/Timurid_Dynasty |title=तिमुरिड डायनेस्टी |publisher=न्यू वर्ल्ड एन्साइक्लोपीडिया |date= |access-date=१८ जुलाई २००९}}</ref> अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है।<ref name="South">{{citeweb|access-date=
अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता [[हुमायुं|नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं]] की मृत्यु उपरांत [[दिल्ली]] की राजगद्दी पर बैठा था।<ref name=bolo>{{cite web|access-date=
अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा।<ref name="Art">{{cite journal|author=Maurice S. Dimand|year=1953|title=मुगल पेंटिग अण्डर अकबर द ग्रेट |journal=द मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ आर्ट बुलेटिन |volume=१२|issue=२ |pages=४६-५१|url=http://www.jstor.org/stable/3257529 |doi= }}</ref> उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। [[मुगल चित्रकारी]] का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक [[संस्कृत]] [[पाण्डुलिपि|पाण्डुलिपियों]] व ग्रन्थों का [[फारसी]] में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व [[हिन्दी]] में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया।<ref name="Art"/> अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये।<ref name="habib">{{harvnb|Habib|1997|p=84}}</ref><ref name="abdullah">{{cite book|author=[[w:Sanjay Subrahmanyam|सुब्रह्मण्यम, संजय]]|year=२००५|publisher=[[ऑक्स्फोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस]] |isbn=9780195668667|title=मुगल्स एण्ड फ़्रैंक्स|page=५५}}</ref><ref name="religion4">{{harvnb|Habib|1997|p=85}}</ref> अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, [[सिख]], हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, [[यहूदी]], [[पुर्तगाली]] एवं कैथोलिक [[ईसाई]] धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था।<ref name="Hasan 2007 73">{{Harvnb|Hasan|2007|p=73}}</ref> उसने आगे चलकर एक नये धर्म [[दीन-ए-इलाही]] की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया।<ref name="AknamaVolII" /><ref name="AknamaVolIII">{{cite book|author=फ़ज़्ल, अबुल|title=अकबरनामा खण्ड-३ }}</ref>
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