"तारा (रामायण)": अवतरणों में अंतर
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* सुग्रीव की पत्नी बनने के पश्चात् क्रोधित लक्ष्मण को शान्त करना।
== जन्म ==
कुछ ग्रन्थों के अनुसार वह [[देवता|देवताओं]] के [[गुरु]] [[बृहस्पति]] की पौत्री थी।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga15/kishkindha_15_prose.htm| title = तारा|accessdate = 1 मई 2012
== वालि का वध ==
राम के यह आश्वासन देने पर कि राम स्वयं वालि का वध करेंगे, सुग्रीव ने वालि को ललकारा। वालि ललकार सुनकर बाहर आया। दोनों में घमासान युद्ध हुआ, परंतु क्योंकि दोनो भाइयों की मुख तथा देह रचना समान थी, इसलिए राम ने असमंजस के कारण अपना बाण नहीं चलाया। अन्ततः वालि ने सुग्रीव को बुरी तरह परास्त करके दूर खदेड़ दिया। सुग्रीव निराश होकर फिर राम के पास आ गया।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga12/kishkindha_12_prose.htm| title = सुग्रीव-वालि प्रथम द्वंद्व |accessdate = 2 मई 2012
=== तारा की वालि को चेतावनी ===
सुग्रीव ने किष्किन्धा जा कर वालि को फिर से द्वंद्व के लिये ललकारा। जब वालि ने दोबारा सुग्रीव की ललकार सुनी तो उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। तारा को शायद इस बात का बोध हो गया था कि सुग्रीव को राम का संरक्षण हासिल है क्योंकि अकेले तो सुग्रीव वालि को दोबारा ललकारने की हिम्मत कदापि नहीं करता। अतः किसी अनहोनी के भय से तारा ने वालि को सावधान करने की चेष्टा की। उसने यहाँ तक कहा कि सुग्रीव को किष्किन्धा का राजकुमार घोषित कर वालि उसके साथ संधि कर ले। किन्तु वालि ने इस शक से कि तारा सुग्रीव का अनुचित पक्ष ले रही है, उसे दुत्कार दिया। किन्तु उसने तारा को यह आश्वासन दिया कि वह सुग्रीव का वध नहीं करेगा और सिर्फ़ उसे अच्छा सबक सिखाएगा।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga15/kishkindha_15_prose.htm| title = सुग्रीव-वालि द्वितीय द्वंद्व |accessdate = 2 मई 2012
=== तारा का विलाप ===
[[चित्र:Vali dying.jpg|thumb|left|350px|तारा (दाहिने) की गोद में मरणासन्न वालि, चित्र के बीच में हनुमान]]
ऐसी मान्यता है कि राम ने वालि पर जो तीर चलाया था वह एक साधारण तीर था, अर्थात् राम के तरकश में अनेकानेक अस्त्र थे जिनसे पल भर में जीव तो क्या पूरी की पूरी सभ्यता का विनाश हो सकता था, जैसे ब्रह्मास्त्र इत्यादि। लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम — जो कि विष्णु का अवतार थे और सर्वज्ञाता थे — ने एक साधारण सा ही तीर इसलिए चलाया क्योंकि वालि की तुरन्त मृत्यु न हो और मरने से पहले उसे अपने प्रश्नों का उत्तर भली भांति प्राप्त हो जाये ताकि वह शांति से प्राण त्याग सके और मरने से पहले वह स्वजनों से भली भांति मिल सके। वालि के आहत होने का समाचार सुनकर तारा अपने पुत्र [[अंगद]] के साथ रणभूमि की तरफ़ भागी। रास्ते में उसे रण से भागते हुए वानर मिले जिन्होंने उसे सलाह दी कि अंगद को लेकर वापस किष्किन्धा जाकर अंगद का राज्याभिषेक कर दे और राम के प्रकोप से बच जाये। लेकिन तारा ने उस वानर समूह को अपने साथ किया और मरणासन्न वालि की ओर प्रस्थान किया। वहाँ जा कर वालि के समक्ष तारा का विलाप अति महत्वपूर्ण है क्योंकि मनुष्य के अलावा कोई और प्राणी अपने स्वजन के मरने पर इतना विलाप नहीं करता है। पहले तो तारा मरते हुए वालि को अंग लगाती है, उसके पश्चात् सुग्रीव तथा राम को वह खरी खोटी सुनाती है। हनुमान मध्यस्थता करते हुए तारा को ढाढ़स बन्धाते हैं और उसे दर्शन शास्त्र समझाते हैं।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga21/kishkindha_21_prose.htm| title = तारा का विलाप |accessdate = 2 मई 2012
== लक्ष्मण को शांत करना ==
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== तारा एक नारी ==
रामायण के कई रूपांतरणों में यह उल्लेख आया है कि जब [[मायावी]] से युद्ध करते समय वालि को काफ़ी समय बीत गया और सुग्रीव ने कन्दरा के मुहाने में एक शिला लगाकर उसका द्वार बन्द कर दिया और किष्किन्धा वापस आकर इस बात की सूचना मंत्रियों को दी कि शायद वालि मायावी के हाथों मारा गया है, तो मंत्रणा करके मंत्रियों ने सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा चुना और प्रकट रूप से विधवा हुई तारा अपने पति के छोटे भाई की पत्नी स्वीकृत हुई। इस प्रथा को न तो वाल्मीकि रामायण में और न ही उसके क्षेत्रीय रूपांतरणों में पाप का दर्जा दिया गया है। लेकिन जब वालि मायावी का वध करके वापस किष्किन्धा आता है और क्रोध के कारण सुग्रीव को देश-निकाला देता है और उसकी पत्नी रूमा को हड़प लेता है तो [[किष्किन्धाकाण्ड]] में सुग्रीव-राम मिलाप के दौरान राम इसे घोर पाप की संज्ञा देते हैं।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga5/kishkindha_5_prose.htm| title = सुग्रीव-राम मिलाप |accessdate = 2 मई 2012
== सन्दर्भ ==
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