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आरक्षण विषय पर प्रथम न्यायिक निर्णय, प्रथम संविधान संशोधन (मद्रास राज्य बनाम चम्मापकम दोराइराजन ए आई आर 1951 ए .सी .पेज- 226)
भारतीय संविधान के भावनाओं के विरुद्ध भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 9-4 -1951 को अपने फैसले में संविधान निर्माताओं की भावनाओं के विरुद्ध निर्णय दिया ।भारत का संविधान 26 -01-1950 को लागू हुआ। तमिलनाडु राज्य की सरकार ने संविधान के अनुच्छेद -46 के तहत सांप्रदायिक सामान्य आदेश नंबर (Communal G.O No-2208 Dated-16-06-1950 )दिनाकित -16-06-1950 के माध्यम से मेडिकल कॉलेज एवं इंजीनियरिंग कॉलेज में आरक्षण की व्यवस्था किया| इस आरक्षण व्यवस्था में प्रत्येक 14 सीट में गैर हिंदू ब्राह्मण 6 सीट, पिछड़ा हिंदू 2 सीट ,ब्राम्हण 2 सीट ,
संविधान के अनुच्छेद 46 के अनुसार --"अनुसूचित जातियों ,अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्ग के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों अभिवृध्दि ---राज्य जनता के दुर्बल वर्गों के विशिष्टता ,अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा और अर्थ संबंधित हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा ।"
संविधान में ऐसी व्यवस्था इसलिए किया गया है क्योंकि ब्राह्मण धर्म शास्त्रों में एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी .के साथ जाति और धर्म के आधार पर विभेद किया जाता रहा है ।इसी लिए संविधान निर्माताओं ने ऐसी व्यवस्था केवल पिछड़ा वर्ग (एस.सी., एस.टी .,ओ.बी.सी .)के लिए किया ,लेकिन मद्रास हाई कोर्ट ने जातीय पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर संविधान की भावनाओं के विरुद्ध उस शैक्षिक आरक्षण को अवैध कर दिया ।उस समय पेरियार ई. वी .रामास्वामी नायकर जिंदा थे ।उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के निर्णय के विरूद्ध पूरे मद्रास मे जन आन्दोलन शुरू कर दिया।इधर मद्रास सरकार ने इस निर्णय विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट मेअपील दाखिल कर दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को बहाल रखा तथा मद्रास सरकार की अपील खारिज कर दिया और कहा कि य सांप्रदायिक सामान्य आदेश(Communal G.O.) दिनांक 16 -06-1950 संविधान के अनुच्छेद 15 (एक )एवं 29(2) के विरुद्ध है। इसलिए अवैध है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश दिनांक 3 मार्च 1951 को हो गया जिसको मद्रास राज्य बनाम श्रीमती चंपाकम दोराइराजन एवं अन्य केस नंबर- 270 -271/1951 ए आई आर 1951 सुप्रीम कोर्ट पेज नंबर 226 ,229 के नाम से जाना जाता है ।
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