"संचार माध्यम": अवतरणों में अंतर

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[[भारत]] में प्राचीन काल से ही संचार माध्यमों का अस्तित्व रहा है। यह अलग बात है कि उनका रूप अलग-अलग होता था। भारत में संचार सिद्धान्त [[काव्य]] परपंरा से जुड़ा हुआ है। साधारीकरण और स्थायीभाव संचार सिद्धान्त से ही जुड़े हुए हैं। संचार मुख्य रूप से संदेश की प्रकृति पर निर्भर करता है। फिर जहाँ तक संचार माध्यमों की प्रकृति का सवाल है तो वह संचार के उपयोगकर्ता के साथ-साथ समाज से भी जुड़ा होता है। चूंकि हम यह भी पाते हैं कि संचार माध्यम समाज की भीतर की प्रक्रियाओं को ही उभारते हैं। निवर्तमान शताब्दी में भारत के संचार माध्यमों की प्रकृति व चरित्र में बदलाव भी हुए हैं लेकिन [[प्रेस]] के चरित्र में मुख्यत: तीन-चार गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं-
 
'''पहला''' : शताब्दी के पूर्वाद्ध में इसका चरित्र मूलत: मिशनवादी रहा, वजह थी स्वतंत्रता आंदोलन व औपनिवेशिक शासन से मुक्ति। इसके चरित्र के निर्माण में तिलक, गांधी, माखनलाल चतुर्वेदी, विष्णु पराडकर, माधवराव सप्रे जैसे [[व्यक्तित्व]] ने योगदान किया था।
 
'''दूसरा''' : 15 अगस्त 1947 के बाद राष्ट्र के एजेंडे पर नई प्राथमिकताओं का उभरना। यहाँ से राष्ट्र निर्माण काल आरंभ हुआ और प्रेस भी इसके संस्कारों से प्रभावित हुआ। यह दौर दो दशक तक चला।