"करणपद्धति": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 10:
पहली श्रेणी निम्नलिखित श्लोक में वर्णित है-
 
: ''व्यासाच्चतुर्घ्नाद् बहुशः प्र्̥थक्स्थात्पृथक्स्थात् त्रिपञ्चसप्ताद्ययुगाह्र्̥ तानि
: ''व्यासे चतुर्घ्ने क्रमशस्त्व्र्̥णम्क्रमशस्त्वृणम् स्वं कुर्जात्कुर्यात् तदा स्यात् परिधिः सुसुक्स्मः॥
 
इसका गणितीय रूपान्तर निम्नलिखित है-
पंक्ति 21:
एक अन्य श्रेणी इस श्लोक में वर्णित है-
 
: ''व्यासाद् वनसम्गुणितात् प्र्̥थगाप्तंपृथगाप्तं त्र्याद्ययुग्-विमुलघनैः।
: ''त्रिगुणव्यासे स्वम्र्̥नंस्वमृणं क्रमसह्क्रमशः क्र्̥त्वापिकृत्वापि परिधिरानेयः॥
 
इसको गणित की भाषा में इस प्रकार लिख सकते हैं-
पंक्ति 32:
निम्नलिखित श्लोक में '''π''' के लिए एक तीसरी श्रेणी वर्णित है-
 
: ''वर्गैर्युजां वा द्विगुणैर्निरेकैर्वर्गीकृतैर्-वर्जितयुग्मवर्गैः
: ''व्यासं च षड्घनं विभजेत् फलं स्वं व्यासे त्रिनीघ्ने परिधिस्तदा स्यात॥